Monday, September 29, 2008

धूल झाड़ते हुए


कल किताबों से धूल झाड़ते हुए एक पर्ची गोद में गिर पड़ी। पता नहीं कब कहां से उतारी थी यह कविता। मगर, कितना कुछ कहती हैं ये पंक्तियां...!

ईसा मसीह
औरत नहीं थे
वरना
मासिक धर्म
11 बरस की उमर से
उन्हें ठिठकाए ही रखता
देवालय के बाहर।


कवि का नाम किसी को पता चले तो कृपया बताएं।

7 comments:

seema gupta said...

"poet ka naam to nahee malum pr jisne bhee likhee hogee, aurat hone ke dard ko smej kr hee likhee hogee"

Regards

MANVINDER BHIMBER said...

bahut achcha.....orat ne hi likha lagta hai

शोभा said...

वाह! बहुत सुंदर

Udan Tashtari said...

क्या बात है!वाह!

Pooja Prasad said...

pata nahi chal pa raha hai ki kisne likha hai...

Pooja Prasad said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

:)

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