
कल किताबों से धूल झाड़ते हुए एक पर्ची गोद में गिर पड़ी। पता नहीं कब कहां से उतारी थी यह कविता। मगर, कितना कुछ कहती हैं ये पंक्तियां...!
ईसा मसीह
औरत नहीं थे
वरना
मासिक धर्म
11 बरस की उमर से
उन्हें ठिठकाए ही रखता
देवालय के बाहर।
कवि का नाम किसी को पता चले तो कृपया बताएं।
7 comments:
"poet ka naam to nahee malum pr jisne bhee likhee hogee, aurat hone ke dard ko smej kr hee likhee hogee"
Regards
bahut achcha.....orat ne hi likha lagta hai
वाह! बहुत सुंदर
क्या बात है!वाह!
pata nahi chal pa raha hai ki kisne likha hai...
:)
Post a Comment