
मेरी एक मित्र है। शादीशुदा है। अक्सर कहती है, बच्चे न होते तो अमन (पति) का साथ कब का छोड़ देती।
सुशीक्षित है। संपन्न परिवार से है। सोशल सर्कल में अच्छी-खासी पहचान है। प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन भी है। विवाहपूर्व नौकरी करती थी, बाद में छोड़ दी। अपनी और पति की सहमति से। उम्र भी तीस से कम(तो नौकरी के लिए कथित आउटडेटेड भी नहीं)।
शादी के छह बरस बीत गए। तीन बरस हो गए, मुझे ये सुनते हुए कि अगर बच्चे न होते तो पति को छोड़ देती। वजह? पति और पत्नी के बीच 'इमोशनल कंपेटेबिलिटी´ नहीं है। वजह पर आपको हैरानी नहीं होगी। मगर, अगर यह बताऊं कि दोनों का प्रेम विवाह है तब...? क्या तब भी हैरानी नहीं होगी...?
मेरे लिए यह चौंंकाने वाला तथ्य था, तब जब मुझे यह नहीं पता था कि भावनात्मक रूप से एक दूसरे की जरूरतों को न समझने और न पूरी करने वाले युवक-युवती भी प्रेम कर विवाह कर लेते हैं। इधर ऎसे कई मामले देखने को मिले! मुझे लगता रहा है प्रेम विवाह का आधार पैसा या सामाजिक स्तर या सामाजिक अपेक्षाएं हों या न हों, मगर इमोशनल कंपेटेबिलिटी अवश्य ही होती है।
विवाह के छहों साल बीतते- बीतते जब भावनात्मक खालीपन इतना साल जाए कि रिश्ते में रूके रहने के लिए बच्चों का हवाला खुद को देना पड़े तो क्या यह उस रिश्ते के टूट चुकेपन का ही प्रमाण नहीं है? तब ऐसा क्यों होता है कि समस्या सुलझाने के लिए या अंततःन सुलझने पर फैसले नहीं लिए जाते...
कृपया बताएं आप क्या सोचते हैं...कि एक पढ़ी- लिखी, नौकरी सकने योग्य महिला भी 'बच्चों की खातिर´पति से अलग नहीं होती। क्योंकर? क्या वाकई बच्चे कभी- कभी मांओं के पांव में परतंत्रता की बेिड़यां बन जाते हैं... या उन तमाम समस्याओं और कथित लांछनों को अवाएड करने के लिए आड़ लेना ज़रूरी हो उठता है?