Monday, December 31, 2012

जो मारे जाएंगे...

बहुत जरूरी है इस कविता के निहितार्थ को समझना। राकेश जोशी जी ने अपनी कविता में जो कह दिया है, वही सच है, सामयिक है।

जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे
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मारे जाएंगे।

कठघरे मे खडे् कर दिए जाएंगे जो विरोध में बोलेंगे
जो सच सच बोलेंगे मारे जाएंगे।

बर्दाश्त नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज हो
उनकी कमीज से ज्यादा सफेद
कमीज पर जिनके दाग नहीं होंगे मारे जाएंगे।

धकेल दिए जाएंगे कला की दुनिया से बाहर
जो चारण नहीं होंगे
जो गुण नही गाएंगे मारे जाएंगे।

धर्म की ध्वजा उठाने जो नहीं जाएंगे जुलूस में
गलियां भून डालेंगीं उन्हें काफिर करार दिए जाएंगे।

सबसे बडा् अपराध है इस समय में
निहत्थे और निरपराधी होना
जो अपराधी नही होंगेमारेजायेंगे

- राजेश जोशी

Tuesday, December 25, 2012

रेप के लिए फांसी पर चंद सवाल


हरेक रेप के लिए फांसी की सजा मांगने वालो एक बात बताओ, किसी का रेप करना किसी का मर्डर करने के बराबर कैसे हो गया? अब आप कहेंगे कि रेप हत्या के बराबर नहीं, उससे भी बड़ा अपराध है। मैं पूछती हूं, क्या वाकई...? अगर ऐसा है तो ऐसा क्यों है, हमें यह गहराई से सोचने की जरूरत है।

रेप भयानक किस्म का यौन अपराध है। लेकिन वह किसी की हत्या से बड़ा अपराध नहीं है। कतई नहीं है। रेप के लिए फांसी नहीं, किसी और डरावनी सजा की जरूरत है। ऐसी सजा जिसे जीते हुए अपराधी न मर पाए न जी पाए। वैसे भी  किसी भी तरह के सेक्शुअल असॉल्ट के बाद एक इंसान (अमूमन औरत) की जिन्दगी खत्म नहीं हो जाती। सच तो यह है कि उसकी जिन्दगी खत्म हो जाती है, ऐसा केवल हमारा समाज मानता है। यदि वाकई एक पीड़ित की जिन्दगी मौत से बदतर (या खत्म) हो रही है तो यह दोष उस घटना का नहीं है, बल्कि समाज का है। 

फोटो साभार: NBT.in
यह वही समाज है जिसकी संसद में एक राष्ट्रीय स्तर की पार्टी (बीजेपी) की कद्दावर महिला नेता सुषमा स्वराज कहती हैं कि दिल्ली गैंगरेप पीड़ित सारी जिन्दगी जिन्दा लाश बन कर रहेगी। इसी समाज में रेप को महिला के माथे का कलंक बता दिया जाता है। पुरुष के साथ जोर जबरदस्ती के इक्का-दुक्का मामले भी सामने आते हैं। क्या उनके लिए जीना मौत से बदतर हो जाता है? नहीं होता। 

इसीलिए, रेप के लिए फांसी की सजा की मांग करते समय कृपया यह सोचिए कि किसी भी रेप की शिकार को आप बेचारगी की नजरों से क्यों देखते हैं? एक कामांध और अपराधी मानसिकता वाले पुरुष की अपनी शारीरिक भूख मिटाने या किसी तरह का बदला लेने के लिए जबरदस्ती किया गया यौनकर्म महिला के लिए शर्मिंदगी का कारण कैसे?? जबकि, सचाई तो यह है कि यह उस पुरुष के माथे पर कलंक है जो खुद को सुपीरियर सेक्स समझने के नशे में चूर है। यह उस शहर की पुलिस और राज्य की कानून व्यवस्था की शर्मिंदगी भरी असफलता है जिससे न तो चेन स्नेचिंग जैसा मामूली अपराध थामा जाता है और न ही आमतौर पर आम आदमी द्वारा किया जाने वाला घटियातम यौन व्यवहार।

हालिया गैंगरेप की शिकार लड़की की हालत नाजुक है। वह जिन्दगी जीने के लिए मौत से लड़ रही है। उसके साथ केवल रेप नहीं हुआ है बल्कि नृशंस अपराध हुआ है। ऊंचे दर्जे की जिजीविषा का परिचय देते हुए उसने खुद को डूबने नहीं दिया है। जो संघर्ष करता है, उसकी जीत अवश्य होती है। इसलिए, वह डूबेगी नहीं। उबर कर आएगी। वक्त आ गया है कि अब हम भी उबरें अपनी जड़ मानसिकता से। इस केस विशेष में मौत की सजा की मांग इसलिए जायज है क्योंकि यह नृशंसतम अपराधों में से एक है। लेकिन, हरेक बलात्कारी को फांसी की सजा क्या प्रैक्टिकली दिला पाएंगे? और ये बताइए, क्या इस कानून का भी दुरुपयोग दहेज के कानून की तरह होने के चांसेज नहीं हैं? 

दरअसल, हमें यह क्लियर होना होगा कि हम चाहते क्या हैं। महिलाओं के लिए सम्मानजनक, सुरक्षित सड़क गली नुक्कड़ और घर या फिर दबा कुचला पिछड़ा पिपासु लोभी कामी मगर कानून के खौफ से थर्राया हुआ समाज।

सेक्स संबंधों को लेकर खुला नजरिया अपनाएंगे तभी सेक्स संबंधी अपराधों को कम कर पाएंगे। सेक्स संबंधी अपराधों की शिकार को जिन्दा लाश मानना बंद करेंगे, तभी उन्हें समाज में चैन से जीने दे पाएंगे। शुरुआत तो भई घर से ही करनी होगी। जब जबरन सेक्स की निंदनीय घटना को किसी महिला और उसके परिवार की इज्जत से जोड़ कर देखना बंद करेंगे, तभी लोग रेप के जरिए रंजिशें निपटाना बंद करेंगे। किसी से बदला लेना हो तो हत्या से ज्यादा मारक हथियार बनता है रेप। रेप को किसी का हथियार मत बनने दीजिए, प्लीज।

स्त्री की देह को उसकी सबसे बड़ी पूंजी मानना/बताना पितृसत्तात्मक समाज की ही घटिया देन है। स्त्री की अस्मिता उसकी योनि से जुड़ी नहीं होती, इस बात पर तब तक बार-बार सोचने की जरूरत है जब तक इसे दिमाग में बिठा नहीं लिया जाता।

वैसे आपको एक बात बताऊं? सुनकर बुरा लगेगा। गुस्सा अंगार में बदल जाएगा। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अपने कार्यकाल के दौरान 35 लोगों की फांसी की सजा माफ कर दी थी जिनमें से 5 रेपिस्ट हैं। प्रेजिडेंट ने यह फैसला तत्कालीन होम मिनिस्टर पी चिदंबरम की सिफारिश पर लिया था। 15 साल की लड़की का रेप और चाकुओं से गोद कर उसकी हत्या करने वाले दो अपराधियों की फांसी की सजा को चिदंबरम ने बदलवाने के लिए बाकायदा लिखित सिफारिश की। उन्होंने लिखा- पीड़ित  और दोषी के दोनों परिवारों के बीच कटुता का इतिहास रहा है। यह अपराध लालच, कामुकता और पारिवारिक झगड़े के चलते हुआ है। होम मिनिस्टर ने यह भी अंडरलाइन किया कि अपराधियों पर कई पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं, इसलिए भी उसे फांसी नहीं दी जानी चाहिए। यहां बता दें कि लड़की को मारने के बाद पूरे परिवार को भी मौत के घाट उतार दिया गया था।

आप पूछ सकते हैं, होम मिनिस्टर को बलात्कारी का परिवार याद आ रहा है, मृतक लड़की और मृतक परिवार की याद क्यों नहीं आई? अब आप बताइए कि 'रेयरेस्ट ऑफ रेयर (रेप) केसेस' में जब फांसी की सजा माफ हो रही हैं तो दर्जनों रेपिस्ट्स को फांसी दिलानी प्रैक्टिकली संभव है क्या...?  सवाल हवा में उछलते हैं और त्रिशंकु बने टंगे रहते हैं। आपको बता दूं कि अब तक केवल एक ही रेप केस में फांसी की सजा execute हो पाई है। वह केस पश्चिम बंगाल का था और उसमें दोषी था धनंजय चटर्जी नाम का वॉचमैन जिसने 14 साल की बच्ची से ऐसी जोर जबरदस्ती की थी कि बच्ची की कलाइयों की हड्डियां टूट गई थीं। 

और एक बात बताइए, यदि रेप के लिए फांसी की सजा का प्रावधान हो गया तो क्या अपराधी रेप के बाद हत्या करने की नहीं सोचेगा? क्योंकि, जब रेप या मर्डर दोनों ही अपराधों में फांसी की सजा होगी, तब वह रेप करके छोड़ेगा नहीं, हत्या ही कर देगा। ताकि, उसके खिलाफ शिकायत तक न दर्ज हो पाए।

Podcast: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं का मेरा पॉडकास्ट

  हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...