Wednesday, May 20, 2020

'कोरोना के डर के बीच गर्भवती पत्नी को लेकर यहां वहां दौड़ता रहा, वे कई महिलाओं को दूर से ही भगा रहे थे'

कोरोना वायरस (Coronavirus) के संक्रमण काल में ऐसा लगता है जैसे सब रुक गया है. वे सभी जरूरी सेवाएं तक रुक गई हैं जिन्हें सरकार (Government) की ओर से चलते रहने की परमिशन (Permission) थी. हालत कुछ ऐसी है कि गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोग, बच्चे और बुजुर्ग हॉस्पिटलों में अपना इलाज (Treatment) तक नहीं करवा पा रहे हैं. एक इंजेक्शन (Injection) तक लगवाने के लिए किलोमीटर तक जाना पड़ रहा है. ओला-ऊबर (Ola-Uber) जैसी टैक्सियां चल नहीं रही हैं. ऐसे में जिनके पास अपना वाहन नहीं है, वह आम इंसान कहां जाए और कैसे अपना इलाज करवाए. ऐसी ही गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है गर्भवती महिलाओं (Pregnant Women) को. जिन क्लीनिकों में इलाज चल रहे थे, वे लॉकडाउन (Lockdown) के चलते बंद हैं. कोई डर से बंद हैं और कोई प्रिकॉशन (Precaution) के चलते. राजा अपनी पत्नी मीना कोटवाल को लेकर दो महीने से अधिक समय से काफी परेशान हैं. उनकी पत्नी का नौंवा महीना चल रहा है और यह खबर लिखते समय वह हॉस्पिटल में डिलीवरी के लिए एडमिट हुई हैं. राजा ने जो मुझे बताया, वह रौंगटे खड़े करने वाला था....

Meena Kotwal Covid 19 article by pooja prasad
मीना कोतवाल


क्लीनिक बंद हो गया और आज तक नहीं खुला
मेरी पत्नी गर्भवती हैं. इस समय उनका नौवां महीना चल रहा है. उन्हें कभी भी लेबर पेन हो सकता है. पहले महीने से ही हम लोग घर के पास में मनचंदा क्लीनिक से दिखवा रहे थे. 7 महीने तक तो देखा लेकिन 22 मार्च के बाद अचानक सबकुछ बंद हो गया. एसेंशियल सर्विस खुली रहने का निर्देश सरकार की ओर से था लेकिन यह क्लीनिक भी तभी से बंद हो गया और आज तक नहीं खुला. डॉक्टर से फोन पर बात होती रही लेकिन प्रेग्नेंसी में बिना देखे और जांच किए कैसे आखिरी के महीनों में इलाज चलाते... इस बीच एंटी-डी का इंजेक्शन भी लगना था और अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट कलेक्ट तक नहीं कर पाए.

पत्नी को एंटी-डी इंजेक्शन लगवाना था
हालांकि डॉक्टर की इस सारी चीजों में मैं कोई खास गलती नहीं मानता क्योंकि वह बुजुर्ग महिला हैं और सरकारी नियम कायदों के चलते ज्यादा प्रिकॉशन ले रही हैं. संभवत: इसी वजह से वह क्लीनिक नहीं खोल रही हैं. वह अच्छी गाइनोकॉलिजिस्ट हैं. आसपास की सभी गर्भवती महिलाएं वहां आती थीं. मेरी पत्नी का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव है तो उन्हें एंटी-डी इंजेक्शन लगवाना था. यह इतना जरूरी है कि यदि यह नहीं लगवाया तो सेकंड टाइम कंसीव करने के दौरान मिसकैरेज की आशंका ज्यादा हो जाती है. ऐसे में जब क्लिनिक बंद था तो डॉक्टर की सलाह पर हम विनया भवन मैटिरनिटी हॉस्पिटल गए. यहां से हमने वह इंजेक्शन लगवाया. इस सबमें काफी भागदौड़ करनी पड़ रही थी.

डॉक्टर से फोन पर ही संपर्क में रह पाए
पत्नी को लेकर पैदल यहां वहां भागना पड़ रहा था और वह भी आखिरी समय में जब किसी भी वक्त डॉक्टरी असिस्टेंस की जरूरत पड़ सकती है. लॉकडाउन के इस पूरे टाइम में हम डॉक्टर से फोन पर ही संपर्क में रह पाए. इस बीच उन्होंने कैल्शियम और आयरन की गोलियां खाने की सलाह दी. हमें सरकारी हॉस्पिटल ले जाने में भी कोरोना के चलते डर लग रहा था. सवा आठ महीने पूरे होने के बाद हमने दूसरे हॉस्पिटल में दिखाने की सोची क्योंकि समय बीतता जा रहा था. लोधी रोड पर स्थित चरक पालिका मैटरिनिटी हॉस्पिटल में भी काफी बुरा व्यवहार रहा. इन्होंने इमरेंजसी में भी मेरी पत्नी को नहीं देखा जबकि मेरी पत्नी दर्द से कराह रही थी. बार बार कहते रहे कि आप लोग बड़े हॉस्पिटल जाइए...

ओपीडी में काफी भीड़ थी और सब आपस में सटे खड़े थे
फिर पंडित मदन मोहन मालवीय हॉस्पिटल में जाना हमने चुना. मनचंदा क्लीनिक से एक ओर मेरी पड़ोसन इलाज करवा रही थीं, इन्हें भी हम साथ लेकर मालवीय हॉस्पिटल गए. आज से करीब दो हफ्ते पहले जब हम यहां पहुंचे तो यहां पर सोशल डिस्टेंसिंग एकदम फॉलो नहीं हो रहा था. महिलाओं की लंबी लाइन थी. समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. ओपीडी में काफी भीड़ थी और सब आपस में सटे खड़े हुए थे. सुरक्षाकर्मी ने बताया कि यहां कोविड के केसेस आ रहे हैं. भीड़ अधिक होने की वजह से लोग आसपास सटकर खड़े होने को मजबूर थे. हमने किसी तरह कोना खोजा और अलग अलग बैठ गए. दोपहर बाद जब हमारा नंबर आया तो डॉक्टर ने हमें न तो ढंग से चेक किया और न ही सही से बात की.

डॉक्टरों ने बुरा व्यवहार किया
आठवां महीना जिस महिला का लगा था, जो हमारे साथ गई थीं, उन्हें दूर दूर से देखा और बस बोला कि अभी तुम्हारा टाइम नहीं है और एक महीने बाद आना. काफी बुरा व्यवहार किया हमारे साथ.  दूसरे लोगों को भी डांट रहे थे और बीमार और जरूरतमंद लोगों के साथ ऐसा गंदा व्यवहार किया जा रहा था. एक गर्भवती महिला के पेट में दर्द था और उन्हें यहां के डॉक्टरों ने बाकायदा भगा दिया. हमारे पास मौजूद डॉक्युमेंट्स भी जल्दी जल्दी देखे और दवाएं लिख दी गईं. कुछ टेस्ट बोले जिन्हें करवाकर जब हम अगली बार गए तो जिस डॉक्टर ने देखा, वह बोलीं कि यहां न आइए.

मालवीय नगर मेट्रो के पास रेनबो हॉस्पिटल
दो तीन लोग एक बेड पर हैं. बच्चे का इम्युन सिस्टम वीक हो जाएगा. अगर आप अफोर्ड कर सकते हैं तो अच्छा तो यह होगा कि आप किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में डिलीवरी करवाएं. हमें सलाह सफरदरजंग हॉस्पिटल की भी दी गई लेकिन हम इसलिए नहीं गए क्योंकि वहां कोरोना के केसेस बहुत अधिक थे. हमने सुना था कि वहां बेड भी परमानेंट बेसिस पर मिलता नहीं है. अब हम मालवीय नगर मेट्रो के पास रेनबो हॉस्पिटल में दिखा रहे हैं. यहां डिलिवरी ही होती है और बच्चों का ही इलाज होता है. अब हम यहीं दिखा रहे हैं और आगे का पूरा प्रोसेस यहीं करवाएंगे. क्योंकि, यहां सफाई भी है और लग रहा है कि सब ठीक रहेगा.

(19 मई को Hindi News18 (network 18) में पब्लिश मेरा आर्टिकल)

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