Saturday, December 28, 2013

पीच सिटी जयपुर

'तुम चुप क्यों हो...'
Jaipur


'.....'

'देखो आगे बैठने की शर्त यह है कि बोलना होगा...'

'मैं सोच रही हूं'

'तो क्या है.. सोचते सोचते बोलो'

'......'

'आप चुप क्यों हो'

'शालिनी भी तो चुप है'

'शालिनी तो सोच रही है'

'हा हा हा ही ही ही ही ही..'

'हा हा हा हा'

'ही ही ही'

'हे हे हे हे'

'मैं सोच रही थी ये शहर गुलाबी नहीं है.. यूं ही पिंक सिटी नाम धर दिया है इसका'

'लो.. पिंक ही तो है

'ये पीच कलर है'

'अरे... ये वो वाला पिंक है जो बारिश में धुल धुल कर हल्का पिंक हो गया हो'

'अच्छा! बड़े होशियार हो तुम.. जयपुर से बड़ा याराना है तुम्हारा? जबरदस्ती का पिंक बनाए दे रहे हो'

'याराना तो तुमसे है। बेचारे शहर को बीच में क्यों लुढ़का रही हो.. पिंक को पीच कर दिया... हा हा हा हा... या मेरे खुदा...'

'शालिनी तुम्हारे शहर पिंक है कि पीच तुम ही बता दो'

'अरे ये रेडिश टोन लिए है.. पिंक है भी नहीं भी... रेडिश है थोड़ा.. गाजरी सा... पिंक ही है मतलब कुल मिलाकर।'

'हा हा हा ही ही ही ही ही..'
'हा हा हा हा'
'ही ही ही'

'यह नारंगी है।'

'हा हा हा'
'ही ही ही'
'हे हे हे'

'अब ये क्या नया नाम दे रहे हो... नारंगी माने?'

'नारंगी माने ओरेंज.. केसरिया याने के'

'ओरेंज!!! अरे ये तुम्हें ओरेंज लग रहा है.. बीजेपी समर्थक हो क्या... पीच और ओरेंज में फर्क समझ नहीं आ रहा जबरदस्ती केसरिया घुसेड़ रहे हो...'

'अरे यार ये पिंक ही है'

'ऐसा है तुम गाड़ी चलाओ.. ड्राइवरों को पैसेंजर्स की बातचीत में नहीं पड़ना चाहिए। असभ्य कहीं के...'

'ओह.. अच्छा...'

'कोई वसुंधरा राजे को जाकर बताओ कि शहर के नाम पर सवालिया निशान लग गया है'

'नहीं वैसे देखो तो सही ध्यान से.. ये दीवारें कहीं से भी पिंक नहीं लगतीं...'

मौनी का मुंह खुला का खुला था..वह दीवारों को ताक रही थी... और सुनील उसे ताक रहा था...शालिनी को अपने शहर की ऐतिहासिक पहचान पर सवाल उठना अच्छा नहीं लग रहा था वह होंठ चिपकाए माथे पर बल डाले चुप हो गई थी.. रविंद्र शालिनी के भावों को समझते हुए उफनती हंसी को कंट्रोल करने की सफल कोशिश कर रहा था और सुनील से इशारों में कह रहा था दोनों लड़कियों का स्क्रू ढीला है...एक सौरभ ही था जो शालिनी के कंधे पर सर टिकाए आधी नींद में सो रहा था...

लेकिन, मैं यह कहना चाहती हूं कि कभी होगी जब होगी.. अब यह पिंक सिटी नहीं लगती।

भले ही इसका मौसम दिसंबर में भी गुलाबी ही हो। सरकार मौसमों के अहसासों पर नामकरण थोड़े ही करती है।

Podcast: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं का मेरा पॉडकास्ट

  हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...