Showing posts with label women health. Show all posts
Showing posts with label women health. Show all posts

Wednesday, May 20, 2020

'कोरोना के डर के बीच गर्भवती पत्नी को लेकर यहां वहां दौड़ता रहा, वे कई महिलाओं को दूर से ही भगा रहे थे'

कोरोना वायरस (Coronavirus) के संक्रमण काल में ऐसा लगता है जैसे सब रुक गया है. वे सभी जरूरी सेवाएं तक रुक गई हैं जिन्हें सरकार (Government) की ओर से चलते रहने की परमिशन (Permission) थी. हालत कुछ ऐसी है कि गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोग, बच्चे और बुजुर्ग हॉस्पिटलों में अपना इलाज (Treatment) तक नहीं करवा पा रहे हैं. एक इंजेक्शन (Injection) तक लगवाने के लिए किलोमीटर तक जाना पड़ रहा है. ओला-ऊबर (Ola-Uber) जैसी टैक्सियां चल नहीं रही हैं. ऐसे में जिनके पास अपना वाहन नहीं है, वह आम इंसान कहां जाए और कैसे अपना इलाज करवाए. ऐसी ही गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है गर्भवती महिलाओं (Pregnant Women) को. जिन क्लीनिकों में इलाज चल रहे थे, वे लॉकडाउन (Lockdown) के चलते बंद हैं. कोई डर से बंद हैं और कोई प्रिकॉशन (Precaution) के चलते. राजा अपनी पत्नी मीना कोटवाल को लेकर दो महीने से अधिक समय से काफी परेशान हैं. उनकी पत्नी का नौंवा महीना चल रहा है और यह खबर लिखते समय वह हॉस्पिटल में डिलीवरी के लिए एडमिट हुई हैं. राजा ने जो मुझे बताया, वह रौंगटे खड़े करने वाला था....

Meena Kotwal Covid 19 article by pooja prasad
मीना कोतवाल


क्लीनिक बंद हो गया और आज तक नहीं खुला
मेरी पत्नी गर्भवती हैं. इस समय उनका नौवां महीना चल रहा है. उन्हें कभी भी लेबर पेन हो सकता है. पहले महीने से ही हम लोग घर के पास में मनचंदा क्लीनिक से दिखवा रहे थे. 7 महीने तक तो देखा लेकिन 22 मार्च के बाद अचानक सबकुछ बंद हो गया. एसेंशियल सर्विस खुली रहने का निर्देश सरकार की ओर से था लेकिन यह क्लीनिक भी तभी से बंद हो गया और आज तक नहीं खुला. डॉक्टर से फोन पर बात होती रही लेकिन प्रेग्नेंसी में बिना देखे और जांच किए कैसे आखिरी के महीनों में इलाज चलाते... इस बीच एंटी-डी का इंजेक्शन भी लगना था और अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट कलेक्ट तक नहीं कर पाए.

पत्नी को एंटी-डी इंजेक्शन लगवाना था
हालांकि डॉक्टर की इस सारी चीजों में मैं कोई खास गलती नहीं मानता क्योंकि वह बुजुर्ग महिला हैं और सरकारी नियम कायदों के चलते ज्यादा प्रिकॉशन ले रही हैं. संभवत: इसी वजह से वह क्लीनिक नहीं खोल रही हैं. वह अच्छी गाइनोकॉलिजिस्ट हैं. आसपास की सभी गर्भवती महिलाएं वहां आती थीं. मेरी पत्नी का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव है तो उन्हें एंटी-डी इंजेक्शन लगवाना था. यह इतना जरूरी है कि यदि यह नहीं लगवाया तो सेकंड टाइम कंसीव करने के दौरान मिसकैरेज की आशंका ज्यादा हो जाती है. ऐसे में जब क्लिनिक बंद था तो डॉक्टर की सलाह पर हम विनया भवन मैटिरनिटी हॉस्पिटल गए. यहां से हमने वह इंजेक्शन लगवाया. इस सबमें काफी भागदौड़ करनी पड़ रही थी.

डॉक्टर से फोन पर ही संपर्क में रह पाए
पत्नी को लेकर पैदल यहां वहां भागना पड़ रहा था और वह भी आखिरी समय में जब किसी भी वक्त डॉक्टरी असिस्टेंस की जरूरत पड़ सकती है. लॉकडाउन के इस पूरे टाइम में हम डॉक्टर से फोन पर ही संपर्क में रह पाए. इस बीच उन्होंने कैल्शियम और आयरन की गोलियां खाने की सलाह दी. हमें सरकारी हॉस्पिटल ले जाने में भी कोरोना के चलते डर लग रहा था. सवा आठ महीने पूरे होने के बाद हमने दूसरे हॉस्पिटल में दिखाने की सोची क्योंकि समय बीतता जा रहा था. लोधी रोड पर स्थित चरक पालिका मैटरिनिटी हॉस्पिटल में भी काफी बुरा व्यवहार रहा. इन्होंने इमरेंजसी में भी मेरी पत्नी को नहीं देखा जबकि मेरी पत्नी दर्द से कराह रही थी. बार बार कहते रहे कि आप लोग बड़े हॉस्पिटल जाइए...

ओपीडी में काफी भीड़ थी और सब आपस में सटे खड़े थे
फिर पंडित मदन मोहन मालवीय हॉस्पिटल में जाना हमने चुना. मनचंदा क्लीनिक से एक ओर मेरी पड़ोसन इलाज करवा रही थीं, इन्हें भी हम साथ लेकर मालवीय हॉस्पिटल गए. आज से करीब दो हफ्ते पहले जब हम यहां पहुंचे तो यहां पर सोशल डिस्टेंसिंग एकदम फॉलो नहीं हो रहा था. महिलाओं की लंबी लाइन थी. समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. ओपीडी में काफी भीड़ थी और सब आपस में सटे खड़े हुए थे. सुरक्षाकर्मी ने बताया कि यहां कोविड के केसेस आ रहे हैं. भीड़ अधिक होने की वजह से लोग आसपास सटकर खड़े होने को मजबूर थे. हमने किसी तरह कोना खोजा और अलग अलग बैठ गए. दोपहर बाद जब हमारा नंबर आया तो डॉक्टर ने हमें न तो ढंग से चेक किया और न ही सही से बात की.

डॉक्टरों ने बुरा व्यवहार किया
आठवां महीना जिस महिला का लगा था, जो हमारे साथ गई थीं, उन्हें दूर दूर से देखा और बस बोला कि अभी तुम्हारा टाइम नहीं है और एक महीने बाद आना. काफी बुरा व्यवहार किया हमारे साथ.  दूसरे लोगों को भी डांट रहे थे और बीमार और जरूरतमंद लोगों के साथ ऐसा गंदा व्यवहार किया जा रहा था. एक गर्भवती महिला के पेट में दर्द था और उन्हें यहां के डॉक्टरों ने बाकायदा भगा दिया. हमारे पास मौजूद डॉक्युमेंट्स भी जल्दी जल्दी देखे और दवाएं लिख दी गईं. कुछ टेस्ट बोले जिन्हें करवाकर जब हम अगली बार गए तो जिस डॉक्टर ने देखा, वह बोलीं कि यहां न आइए.

मालवीय नगर मेट्रो के पास रेनबो हॉस्पिटल
दो तीन लोग एक बेड पर हैं. बच्चे का इम्युन सिस्टम वीक हो जाएगा. अगर आप अफोर्ड कर सकते हैं तो अच्छा तो यह होगा कि आप किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में डिलीवरी करवाएं. हमें सलाह सफरदरजंग हॉस्पिटल की भी दी गई लेकिन हम इसलिए नहीं गए क्योंकि वहां कोरोना के केसेस बहुत अधिक थे. हमने सुना था कि वहां बेड भी परमानेंट बेसिस पर मिलता नहीं है. अब हम मालवीय नगर मेट्रो के पास रेनबो हॉस्पिटल में दिखा रहे हैं. यहां डिलिवरी ही होती है और बच्चों का ही इलाज होता है. अब हम यहीं दिखा रहे हैं और आगे का पूरा प्रोसेस यहीं करवाएंगे. क्योंकि, यहां सफाई भी है और लग रहा है कि सब ठीक रहेगा.

(19 मई को Hindi News18 (network 18) में पब्लिश मेरा आर्टिकल)

Sunday, April 26, 2020

औरतों के यूटरस में कहां से आ जाते हैं ये फाइब्रॉयड्स...

जिस यूटरस (Uterus)में बच्चे नहीं होते, उसमें कभी-कभी फाइब्रॉयड्स (fibroids) आ जाते हैं...', स्त्री रोग विशेषज्ञ (Gynecologist) ने जब मुझे Uterine fibroid को लेकर यह बात कही तो मेरे जेहन में उन महिलाओं के नाम और चेहरे घूम गए जिन्होंने बच्चे भी पैदा किए लेकिन फिर भी वे फाइब्रॉयड्स की 'शिकार' हो गईं, और सालोंसाल इससे जूझती रहीं. कुछ आज भी जूझ रही हैं. तो फिर ये फाइब्रॉयड्स, जिसे एक प्रकार की रसौली भी कहा जा सकता है, होते क्यों है? एक हंसती-खेलती स्त्री की जिन्दगी में तांडव मचाकर रख देने वाले इन फायब्रॉयड्स की पैदाइश के कारण क्या हैं? कैसे ये पनपते हैं और कैसे ये खत्म होते हैं? इनका इलाज क्या है? ये खत्म होते भी हैं या ताउम्र परेशान करते हैं? क्या ये कैंसर में भी तब्दील हो सकते हैं? तमाम रोगों की तरह फाइब्रॉयड्स के पीछे भी लाइफस्टाइल और स्ट्रेस की उठापटक है लेकिन क्या सिर्फ इतना ही है?

यदि आप पुरुष हैं और ये लेख पढ़ रहे हैं तो आपको बता दें कि इस रोग से जूझती हूई महिलाएं आपके इर्द- गिर्द भी हो सकती हैं. इसलिए, इस दुर्दांत तकलीफदेह समस्या के बारे में पढ़ें, समझें और मददगार बनें. दरअसल फाइब्रॉयड्स ऐसे ट्यूमर (गांठें) हैं जो कभी बेहद तकलीफदेह मगर नॉन-कैंसरस होती हैं देऔर कभी-कभी केवल 'शरीर में पड़ी रहती' हैं. ये ऐसे ट्यूमर होते हैं जो यूटरस की मांसपेशियों के टिश्यूज़ से पैदा हो जाते हैं. वेबएमडी के मुताबिक, इनके साइज, शेप और इनकी लोकेशन हमेशा एक सी होती हो यह जरूरी नहीं. ये यूटरस के भीतर भी हो सकते हैं और इसके बाहर भी चिपके हुए हो सकते हैं. कई तो काफी छोटे होते हैं लेकिन 
भारी और बड़े.

कॉपीराइट


आपको फाइब्रॉयड्स (fibroids) हैं, यह कैसे पता चलेगा...?

आपको फाइब्रॉयड्स (fibroids) हैं, यह अल्ट्रासाउंड के जरिए पता चलता है. हां, अपने शरीर और पीरियड्स से जुड़े कुछ बदलावों पर गौर करें और डॉक्टर से मिलें. फाइब्रॉयड्स का शक होने पर वह भी पुख्ता तौर पर प्रॉपर डायग्नोज के बाद ही बताएगा कि आप इस समस्या से पीड़ित हैं. एक महत्वपूर्ण बात यह है कि शुरू में पता ही नहीं चलता है कि ऐसा कुछ है. पीरियड का अनियमित हो जाना, पीरियड्स का 6 दिन से ज्यादा चलना, पेल्विक पेन (Pelvic Pain), लोअर बैक पैन (Lower back pain), बार बार यूरिन आना, अक्सर कब्ज रहना, शारीरिक संबंधों (Sexual relations) के दौरान दर्द होना. कई बार इतनी ज्यादा ब्लीडिंग होने के चलते महिला को एनीमिया भी हो सकता है. इस प्रकार की दिक्कतों के बढ़ने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलें. यदि फाइब्रायड हों तो अपने लाइफ स्टाइल में बेहतर बदलाव लाएं. लाइफस्टाइल में जरूरी बदलावों के बारे में हमने इसी लेख में नीचे लिखा है.

आखिर ये फायब्रॉयड्स क्यों होते हैं...?

मेडलाइन प्लस के मुताबिक, डॉक्टर पुख्ता तौर पर नहीं बता पाते कि फाइब्रॉयड्स का असल कारण क्या है. लेकिन रिसर्च और अध्ययनों से पता चला है कि इसके पीछे कई कारण होते हैं. जैसे कि जेनेटिक बदलाव. हारमोन्स में बदलाव. Estrogen और progesterone ऐसे दो हॉरमोन हैं जिनके चलते कई बार फायब्रॉयड्स के बढ़ने की घटनाएं सामने आई हैं. फाइब्रॉयड्स में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोरेन पाया जाता है और ये दोनों सामान्य यूटरिन मसल में भी पाए जाते हैं. आमतौर पर फाइब्रॉयड्स मीनोपॉज के बाद अपने आप सिकुड़ जाते हैं क्योंकि तब हॉरमोन्स का सीक्रेशन कम हो जाता है.

कैसी लाइफस्टाइल बेहतर, क्या खाएं-क्या न खाएं

 फल और सब्जियों का सेवन अधिक करें. माना जाता है कि सेब, ब्रोकली व टमाटर जैसे ताजे फल और सब्जियां खाने से फायब्रॉएड के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

• रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर पर नजर रखें. ब्लड प्रेशर बढ़ना फायब्रॉएड के लिए हानिकारक बताया जाता है.

• सबसे महत्वपूर्ण बात जो आपको ध्यान रखनी चाहिए वह है स्ट्रेस लेवल कम करना. मेडिटेशन या योगा के जरिए खुद को शांत रखने का प्रयत्न करें. चिंताओं को खुद पर हावी न होने दें.

• स्मोकिंग और एल्कोहल से दूरी बनाकर रखें. शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ना है जोकि फायब्रॉएड के लिए ठीक स्थिति नहीं है.

• चाय कॉफी यानी कैफीन की मात्रा कम करना बेहतर.

• व्यायाम पीसीओडी और इस परिस्थति में जरूरी बताए जाते हैं. वजन संतुलित होगा तो ठीक होने की संभावना रहेगी. इसके अलावा व्यायाम से शरीर डीटॉक्सीकेट भी होता है.

• डॉक्टर्स इस स्थिति में प्रोसेस्ड फूड के सेवन से परहेज करने के लिए कहते हैं. हार्मोंस के स्तर को डिस्बैलेंस करने में जंक फूड, प्रोसेस्ड फू़ड का खास योगदान होता है.

फाइब्रॉयड्स (fibroids) से निजात के लिए क्या हैं इलाज...

फाइब्रॉयड्स (fibroids) के चलते समस्याएं गंभीर रूप लेने लगें तो डॉक्टर दवाएं देते हैं और कभी-कभी सर्जरी के लिए भी सलाह देते हैं. मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेस की तृप्ति मेहर ने एक संबंधित स्टडी के बाद कहा कि कई बार डॉक्टर्स गर्भाशय निकालने जैसे सुझाव तब भी दे डालते हैं जब इसकी जरूरत नहीं होती. Indusdictum के मुताबिक, वह कहती हैं कि hysterectomy यानी गर्भाशय का रिमूवल जैसे उपाय अत्याधिक ब्लीडिंग और फाइब्रॉयड्स के केसेस में भी सुझा दिए जाते हैं जबकि इन समस्याओं में गर्भाशय को शरीर से रिमूव कर देने की जरूरत नहीं भी होती. गर्भाशय निकाल देने के बाद न तो आपको पीरियड्स होंगे और न ही आप कभी मां बन पाएंगी.

यूटरिन आर्टरी ऐम्बॉलिजेशन (Uterine Artery Embolization- UAE): यदि फाइब्रॉयड्स का साइज बड़ा है, तो यह तरीका अपनाते हैं जिसमें एक छोटी सी 'ट्यूब' को पैरों की रक्त वाहिकाओं के जरिए शरीर में पहुंचाया जाता है. दरअसल इस प्रक्रिया के तहत फाइब्रॉयड्स को सिकोड़ने की कोशिश की जाती है. US National Library of Medicine National Institutes of Health में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, कई मामलों में देखा गया है कि इस तरीके को अपनाने वाली महिलाएं गर्भधारण कर पाई थीं.

एंडोमेट्रियल एब्लेशन (Endometrial ablation): यदि फाइब्रॉयड्स का आकार बहुत अधिक बड़ा नहीं है और ब्लीडिंग अत्याधिक होती है तो यह तरीका अपनाया जाता है. इसमें गर्भाशय की परतों को हटा दिया जाता है. बलून थैरेपी, हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो वेव्स और लेजर एनर्जी जैसे तरीकों में से किसी एक के जरिए यह किया जाता है.

अल्ट्रासाउंड सर्जरी (MRI Guided Focused Ultrasound Surgery): US National Library of Medicine National Institutes of Health के मुताबिक, एमआरआई के जरिए स्कैन किया जाता है और देखा जाता है कि आखिर फाइब्रॉयड किस जगह पर हैं. एक प्रकार की मेडिकल-सुई के जरिए फाइबर ऑप्टिकल केबल डाली जाती है जो फाइब्रॉयड तक पहुंचकर इसे सिकोड़ देती है.

(नेटवर्क 18 की हिन्दी वेबसाइट Hindi.News18.com पर पब्लिश्ड मेरा आर्टिकल)

Thursday, April 23, 2020

यूं जो तकता है आसमान को तू, कोई रहता है आसमान में क्या?


तीसरी मंजिल के हमारे कमरे की खिड़की तीसरी मंजिल के उनके आखिरी कमरे की ओर खुलती थी. उनके कमरे में हमारी खिड़की न चाहते हुए भी झांकने की कोशिश करती रहती थी. क्योंकि, दिन भर उसके पाट खुले रहते और कभी पर्दा लगता और हटता रहता. हमारी खिड़की हम बच्चों की तरह ही अक्सर गतिमान रहती. मगर उनकी खिड़की अक्सर मोटे पर्दे से ढकी रहती. खिड़की के कोनों से एक किरण भी कमरे में प्रवेश नहीं कर सकती थी क्योंकि मोटा दरी जैसा पर्दा कोनों में ठूंसकर फंसाया रहता था. जब-जब वह पर्दा हटता तो मैले शीशों वाली खिड़की पर चटकनी लगी होती. हम बच्चे आंखें मिचमिचाकर अंदर देखने की कोशिश करते रहते लेकिन दिखता कुछ नहीं.


हम अंदर क्यों देखना चाहते थे? सवाल लाजिमी है. दरअसल, उस घर से कभी- कभी रोने की आवाज आती. खिड़की के पास सटा जैसे कोई रो रहा हो. रोना हल्का नहीं होता था, कभी- कभी चीख- चीखकर रोने की आवाज आती. जैसे कोई पीट रहा हो या फिर कोई जिद में रोता है न, वैसे. वहां जो परिवार रहता था उनकी बेटी उसी स्कूल में पढ़ती थी जिसमें हम पढ़ रहे थे. उनका बेटा मेरे भाई की जान पहचान वाला था. क्योंकि भाई ने ही एक दिन धीमी आवाज में मेरी ममी को बताया था कि पायल की ममी 'पागल' हैं और उनको कभी-कभी दौरे पड़ते हैं. अड़ोस-पड़ोस की इस परिवार को लेकर कानाफूसी से यह बात पक्की हो गई. यह भी कहा गया कि पायल और राजेश अपनी ममी के चलते शर्म खाते हैं और इस मारे किसी से ज्यादा मिलते जुलते नहीं हैं. मैंने अपनी ममी को दो-तीन बार इस परिवार का जिक्र चलने पर पापा से कहते पाया कि इलाज क्यों नहीं करवाते ये लोग ढंग से. ममी की आवाज में गुस्सा सा होता. बेचैनी सी होती. इस परिवार का जिक्र इसलिए भी चल निकलता था क्य़ोंकि पड़ोस से खबरें छन कर आ रही थीं कि पायल शायद स्कूल छोड़ दे.

पायल ने अंतत: स्कूल छोड़ दिया था. वह कई दिन नहीं दिखी. बालकनी में कपड़े सुखाते उतारते, और झाड़ू लगाते हुए वह लोगों को नहीं दिखी. हमने सुना कि वह दूसरे धर्म के किसी लड़के साथ भाग गई है. बाद में पता चला कि वह भागी नहीं थी, रिश्तेदार के घर गई हुई थी. रिश्तेदार के घर! और लोग कह रहे थे कि वह भाग गई है! इस बीच उनके कमरे का पर्दा हटा रहा. शायद वह ममी को साथ लेकर रिश्तेदार के घर गई थी. अब हमें एक बंद अलमारी दिख जाती थी. खिड़की आधी खुली और आधी बंद रहती थी. तेज हवा में खटाखट बजने लगती थी. रात में जब खिड़की बजती थी तो बहुत डर लगता था. क्योंकि, ऐसा लगता था कि वहां बैठा कोई रो रहा है. मुझे ऐसा लगता वहां पायल की ममी बैठी हैं. इस भ्रम ने मेरी कई रातें हराम कीं. क्या वह 'पागल' थीं? पागल तो चिल्लाते रहते हैं न. हाथ- पांव मारते हैं. चीजें तोड़ते हैं. फिर पायल की ममी ने कभी कमरे की खिड़की खुद क्यों नहीं जो...र से धक्का मारकर खोली थी? वह रोती थीं लेकिन लड़ती- चिल्लाती क्यों नहीं थीं. मैंने उन्हें कभी नहीं देखा था. मगर अड़ोस-पड़ोस की आंटियों और ममी ने देखा था. ममी ने बताया था कि वह कभी-कभी बालकनी में नहाकर धूप में सिर के बाल सुखाने बैठ जाती थीं. ऐसे ही कभी तौलिया उठाने आ जाती थीं. किसने कब कहा, यह तो याद नहीं लेकिन बीच- बीच में यह सुना हुआ याद है कि 'वह अब ठीक हैं', 'उन्हें फिर दौरे पड़ने लगे हैं.' आदि इत्यादि.

फिर एक दिन, कई महीने बाद, मैंने ममी से पूछा, पायल औरी शिफ्ट हो गए हैं क्या. ममी ने कहा था, यहीं तो हैं. मैंने इसलिए पूछा था क्योंकि कई दिनों तक वह खिड़की खुली रही. पर्दा भी भूरा काला नहीं था, किसी और रंग का साफ सुथरा था. और अब पूरा हटा रहता था. कोनों में गिट्टक लगी रहती और इसलिए हवा चलने पर अब शीशे वाले पाट बजते नहीं थे. पता नहीं मुझे कैसे पतादेश चला, लेकिन कुल यह पता चला कि 'पायल की ममी गुजर गई हैं.' 'वह बीमार भी रहने लगी थीं और 'पागल' तो थी हीं.' 'पायल छोटी बच्ची कहां तक पागल औरत की देखभाल करती.'


10 तारीख को मेंटल हेल्थ डे है. अक्टूबर का कैलेंडर देखते हुए मुझे पायल याद आ रही है. उसकी ममी भी याद आ रही है. मेरे मन में आज वही बेचैनी है जो उस वक्त मेरी मां की आवाज में थी. 'इलाज क्यों नही करवाते ये लोग ढंग से... '.

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर हमारा रवैया अगर स्वस्थ्य होता, यदि उनका इलाज करवा लिया गया होता, तो पायल को न स्कूल छोड़ना पड़ता, न मां को खोना पड़ता...  पायल और राजेश के मैंने यहां नाम बदल दिए हैं. मगर नाम बदल देने से हालात नहीं सुधरते. हालात सुधरते हैं, कदम उठाने से. कदम, बेहतरी की दिशा में.. उठाने से.

फिर मैंने कई दिन बाद पायल को बालकनी में देखा था, वह हाथ में चाय का कप लिए आसमान की ओर कहीं दूर क्षितिज में देख रही थी. ऐसा कई बार हुआ. वह ऐसे कई बार दिखी. जौन एलिया का यह शेर मुझे आज इस दृश्य का ध्यान करके याद आ रहा है- यूं जो तकता है आसमान को तू, कोई रहता है आसमान में क्या?

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चाहिए अवेयरनेस, डराते हैं आंकड़े

4 अक्टूबर से लेकर 10 अक्टूबर तक देश में नेशनल मेंटल हेल्थ वीक मनाया जा रहा है. इस बार की थीम है 'प्रिवेन्शन ऑफ सुइसाइड्स' यानी आत्महत्या की रोकथाम. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिपोर्ट के हवाले से टाइम्स ऑफ इंडिया ने छापा है कि 15 से 29 साल के आयुवर्ग में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण आत्महत्या है. हर 40वें सेकंड में एक खुदकुशी होती है.हर साल करीब 8 लाख आत्महत्याएं दर्ज होती हैं. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में देखें तो खुदकुशी करने वाला हर तीसरा शख्स भारत से होता है. यह कितना दिल दहला देने वाला है!


डॉक्टर्स कहते हैं, शरीर बीमार होता है तो दवाएं लेते हैं. दिमाग खराब (परेशान) होता है तो चुप्पी ओड़ लेते हैं. खुद को समझाते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं. कुछ कोशिश करते हैं लेकिन नहीं संभलता तो उसे उसके हाल पर छोड़ देते हैं. किसी प्रफेशनल मदद के लिए हाथ नहीं बढ़ाते. इसका नतीजा यह होता है कि मानसिक तकलीफ कब मानस और मस्तिष्क को अपने कब्जे में ले लेती है पता ही नहीं चलता. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया की कुल आबादी का 12 फीसदी हिस्सा मानसिक गड़बड़ियों से जूझ रहा है. यानी, 450 मिलियन लोग. यानी, चार में से एक शख्स ऐसा है जिसका मानसिक दिक्कत की अगर सही पहचान कर ली जाए तो इलाज से वह ठीक हो सकता है. 2002 के डाटा बताते हैं कि 154 मिलियन लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. यह आंकड़ा अब और बढ़ चुका होगा. जरूरत है, खुद को और अपने पास को कुछ संवेदनशीलता के साथ देखने की, ताकि समय रहते बात बिगड़ने से रोकी जा सके.


(नेटवर्क 18 की हिन्दी वेबसाइट Hindi.News18.com पर 10 अक्टूबर को पब्लिश्ड)

Podcast: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं का मेरा पॉडकास्ट

  हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...