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Wednesday, January 9, 2013

निदा, तुझे पी जाएं तो?

निदा को मैंने इतना सुना, जितना किसी और को नहीं सुना। पढा़ तो कइयों को लेकिन निदा को सुना ज्यादा, पढ़ा कम। वजह? निदा के दीवाने एक दोस्त ने हर मौके-बेमौके निदा की पंक्तियां मेरे सामने उगलीं, उड़ेलीं, बकी, कहीं और गुनगुनाईं। आज एक नज्म मैंने पढ़ी उनकी और लगा कि बस जी लूं ये पक्तियां.. तुरंत की तुरंत।

फोटो साभार: Corbis
इतनी पी जाओ
कि कमरे की सियह ख़ामोशी
इससे पहले कि कोई बात करे
तेज नोकीले सवालात करे


इतनी पी जाओ
कि दीवारों के बेरंग निशान
इससे पहले कि
कोई रूप भरें
माँ बहन भाई की तस्वीर करें
मुल्क तक़्सीम करें
इससे पहलें कि उठें दीवारें
खून से माँग भरें तलवारें


यूँ गिरो टूट के बिस्तर पे अँधेरा खो जाए
जब खुले आँख सवेरा हो जाए
इतनी पी जाओ!

Wednesday, September 2, 2009

बस बात- ३



life is just a hand away
death, too, is a hand away
in between
the happiness and despair-
I reside...

fake is what soul wore today
shadow is what I appear today
my face does not show in the mirror
have u seen it stolen somewhere..?

let me sink in the blues of life
let me try to hold the truth
let me be the human
let me feel the pain I created

I don’t want any mentor
any guide any philosopher
don’t expect don’t fulfill too
If it is life
let it be..
If it is path to death
let it be..
I want to feel it
how deathful life could be

let me be in between
the happiness and despair-
because, life is just a hand away
death, too, is a hand away

let life choose me
let death reject me..
till then
let me be in between
the happiness and despair.

Tuesday, August 11, 2009

अब धैर्य नहीं

उम्मीद, एक फुदकती चिड़िया

कौन साला इंतजार करे

कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा
एक दिन वह बिना पिए घर जरुर आएगा
अपने सोते हुए बच्चों के सिर पर स्नेह से हाथ फिरा पाएगा
कहेगा, खाने को दो भूख लगी है
बिना उल्टी किए बिस्तर पर पसरेगा
और जूते उतार कर टीवी ऑन कर पाएगा
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा।

एक दिन नई वाली पड़ोसन भूल जाएगी पूछना
कि कौन कास्ट हो
वो आएगी, बैठेगी, और बतियाएगी
चीनी की कटोरी लेते में
यह नहीं भांपना चाहेगी
कि कौन कास्ट हो
वह जान जाएगी कौन कास्ट हूं
और फिर चीनी ले जाएगी
कि एक दिन चीनी की मिठास मेरी कास्ट पर भारी पड़ जाएगी

पर कौन साला इंतजार करे.................

Monday, August 10, 2009

बस बात- 2

आइए उम्मीद जगाएं

ईश्वर के नाम पर जलाएं कुछ दिए,
और इन दियों से असंख्य देहरी टिमटिमाने की आस बनाएं..
आइए उम्मीद जगाएं।
1 मिनट के करतब पर जो 10 हजार ले जाए, उसे थपथपाएं (!)
हजारों नट और सपेरे कहां गुमनाम हुए, क्यों न सवाल उठाएं
बस जो छा जाए, क्यों उसे ही सलाम बजाएं।
रिअल्टी शो की दुनिया में
न्याय नाम के हत्यारे को
क्यों न फांसी पर चढ़ाएं।

आइए कुछ मौतों की दुआएं मनाएं।

Thursday, June 25, 2009

खेल खेल में





खेल खेल में अजब खेल कर जाता है आदमी,
खेल खेल में खेल बन जाता है आदमी।

खेल खेल में खेल सिर्फ खेला नहीं जाता,
खेल की किसी बात को झेला नहीं जाता।

खेल में जिंदगी खेलनुमा हो जाती है,
खेल में भूल कभी खाली नहीं जाती है।

खेल में खिलाड़ी छुपे हुए होते हैं,
खेल में दांव शतरंज से चालबाज होते हैं।

खेल वही असल है, जिसका कोई नाम नहीं होता।
इसलिए इस खेल में खुद को खो देता है आदमी।

आज जो खेल कर दांव जीत जाता है,
कल वही खिलाड़ी औंधे मुंह की खाता है।

यहां नहीं कभी खेल का अंत होता,
आदमी मर जाता है, पर खेल चलता जाता है।

खेल में खिलाड़ी का चेहरा नहीं होता,
यहां कोई टीम, कोई मोहरा नहीं होता।

यहां बस आदमी बस आदमी से खेलता है,
यहां कोई रेफरी कोई कोच नहीं होता।

खेल में इंसान और हैवान सब एक हैं,
खेल में मुखौटे कुछेक नहीं, अनेक हैं।

खेल से तंग आकर, खेल फिर खेलता है आदमी।
खेल में फिर खुद ही खेल बनता है आदमी।

खेल एक नाटक है, खेल एक सच्चाई भी।
खेल की हर शाम पर किताब लिखता है आदमी।

खेल में जो हारा हो, लाओ कोई आदमी।
खेल में जो हारता है, जीता नहीं आदमी।

खेल की अवधि, उम्र जितनी लंबी है।
इसलिए, मौत से पहले हारता नहीं आदमी।

लाओ कोई जिंदा शख्स, जो खेल कर हारा हो,
खेल जब तक चालू है, बस खिलाड़ी है हर आदमी।

Podcast: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं का मेरा पॉडकास्ट

  हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...