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Tuesday, April 8, 2014

महमूद दरवेश: अगर ऎसी सड़क से गुजरो

अगर तुम किसी ऎसी सड़क से गुजरो जो नरक को न जा रही हो,
कूड़ा बटोरने वाले से कहो, शुक्रिया !

अगर ज़िंदा वापस आ जाओ घर, जैसे लौट आती है कविता,
सकुशल, कहो अपने आप से, शुक्रिया !

अगर उम्मीद की थी तुमने किसी चीज की, और निराश किया हो तुम्हारे अंदाजे ने,
अगले दिन फिर से जाओ उस जगह, जहां थे तुम, और तितली से कहो, शुक्रिया !

अगर चिल्लाए हो तुम पूरी ताकत से, और जवाब दिया हो एक गूँज ने, कि
कौन है ? पहचान से कहो, शुक्रिया !

अगर किसी गुलाब को देखा हो तुमने, उससे कोई दुःख पहुंचे बगैर खुद को,
और खुश हो गए होओ तुम उससे, मन ही मन कहो, शुक्रिया !

अगर जागो किसी सुबह और न पाओ अपने आस-पास किसी को
मलने के लिए अपनी आँखें, उस दृश्य को कहो, शुक्रिया !

अगर याद हो तुम्हें अपने नाम और अपने वतन के नाम का एक भी अक्षर,
एक अच्छे बच्चे बनो !

ताकि खुदा तुमसे कहे, शुक्रिया !

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