Tuesday, March 16, 2021

Podcast: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं का मेरा पॉडकास्ट

 


हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट कर रही हूं. 

Wednesday, May 20, 2020

'कोरोना के डर के बीच गर्भवती पत्नी को लेकर यहां वहां दौड़ता रहा, वे कई महिलाओं को दूर से ही भगा रहे थे'

कोरोना वायरस (Coronavirus) के संक्रमण काल में ऐसा लगता है जैसे सब रुक गया है. वे सभी जरूरी सेवाएं तक रुक गई हैं जिन्हें सरकार (Government) की ओर से चलते रहने की परमिशन (Permission) थी. हालत कुछ ऐसी है कि गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोग, बच्चे और बुजुर्ग हॉस्पिटलों में अपना इलाज (Treatment) तक नहीं करवा पा रहे हैं. एक इंजेक्शन (Injection) तक लगवाने के लिए किलोमीटर तक जाना पड़ रहा है. ओला-ऊबर (Ola-Uber) जैसी टैक्सियां चल नहीं रही हैं. ऐसे में जिनके पास अपना वाहन नहीं है, वह आम इंसान कहां जाए और कैसे अपना इलाज करवाए. ऐसी ही गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है गर्भवती महिलाओं (Pregnant Women) को. जिन क्लीनिकों में इलाज चल रहे थे, वे लॉकडाउन (Lockdown) के चलते बंद हैं. कोई डर से बंद हैं और कोई प्रिकॉशन (Precaution) के चलते. राजा अपनी पत्नी मीना कोटवाल को लेकर दो महीने से अधिक समय से काफी परेशान हैं. उनकी पत्नी का नौंवा महीना चल रहा है और यह खबर लिखते समय वह हॉस्पिटल में डिलीवरी के लिए एडमिट हुई हैं. राजा ने जो मुझे बताया, वह रौंगटे खड़े करने वाला था....

Meena Kotwal Covid 19 article by pooja prasad
मीना कोतवाल


क्लीनिक बंद हो गया और आज तक नहीं खुला
मेरी पत्नी गर्भवती हैं. इस समय उनका नौवां महीना चल रहा है. उन्हें कभी भी लेबर पेन हो सकता है. पहले महीने से ही हम लोग घर के पास में मनचंदा क्लीनिक से दिखवा रहे थे. 7 महीने तक तो देखा लेकिन 22 मार्च के बाद अचानक सबकुछ बंद हो गया. एसेंशियल सर्विस खुली रहने का निर्देश सरकार की ओर से था लेकिन यह क्लीनिक भी तभी से बंद हो गया और आज तक नहीं खुला. डॉक्टर से फोन पर बात होती रही लेकिन प्रेग्नेंसी में बिना देखे और जांच किए कैसे आखिरी के महीनों में इलाज चलाते... इस बीच एंटी-डी का इंजेक्शन भी लगना था और अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट कलेक्ट तक नहीं कर पाए.

पत्नी को एंटी-डी इंजेक्शन लगवाना था
हालांकि डॉक्टर की इस सारी चीजों में मैं कोई खास गलती नहीं मानता क्योंकि वह बुजुर्ग महिला हैं और सरकारी नियम कायदों के चलते ज्यादा प्रिकॉशन ले रही हैं. संभवत: इसी वजह से वह क्लीनिक नहीं खोल रही हैं. वह अच्छी गाइनोकॉलिजिस्ट हैं. आसपास की सभी गर्भवती महिलाएं वहां आती थीं. मेरी पत्नी का ब्लड ग्रुप ओ नेगेटिव है तो उन्हें एंटी-डी इंजेक्शन लगवाना था. यह इतना जरूरी है कि यदि यह नहीं लगवाया तो सेकंड टाइम कंसीव करने के दौरान मिसकैरेज की आशंका ज्यादा हो जाती है. ऐसे में जब क्लिनिक बंद था तो डॉक्टर की सलाह पर हम विनया भवन मैटिरनिटी हॉस्पिटल गए. यहां से हमने वह इंजेक्शन लगवाया. इस सबमें काफी भागदौड़ करनी पड़ रही थी.

डॉक्टर से फोन पर ही संपर्क में रह पाए
पत्नी को लेकर पैदल यहां वहां भागना पड़ रहा था और वह भी आखिरी समय में जब किसी भी वक्त डॉक्टरी असिस्टेंस की जरूरत पड़ सकती है. लॉकडाउन के इस पूरे टाइम में हम डॉक्टर से फोन पर ही संपर्क में रह पाए. इस बीच उन्होंने कैल्शियम और आयरन की गोलियां खाने की सलाह दी. हमें सरकारी हॉस्पिटल ले जाने में भी कोरोना के चलते डर लग रहा था. सवा आठ महीने पूरे होने के बाद हमने दूसरे हॉस्पिटल में दिखाने की सोची क्योंकि समय बीतता जा रहा था. लोधी रोड पर स्थित चरक पालिका मैटरिनिटी हॉस्पिटल में भी काफी बुरा व्यवहार रहा. इन्होंने इमरेंजसी में भी मेरी पत्नी को नहीं देखा जबकि मेरी पत्नी दर्द से कराह रही थी. बार बार कहते रहे कि आप लोग बड़े हॉस्पिटल जाइए...

ओपीडी में काफी भीड़ थी और सब आपस में सटे खड़े थे
फिर पंडित मदन मोहन मालवीय हॉस्पिटल में जाना हमने चुना. मनचंदा क्लीनिक से एक ओर मेरी पड़ोसन इलाज करवा रही थीं, इन्हें भी हम साथ लेकर मालवीय हॉस्पिटल गए. आज से करीब दो हफ्ते पहले जब हम यहां पहुंचे तो यहां पर सोशल डिस्टेंसिंग एकदम फॉलो नहीं हो रहा था. महिलाओं की लंबी लाइन थी. समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें. ओपीडी में काफी भीड़ थी और सब आपस में सटे खड़े हुए थे. सुरक्षाकर्मी ने बताया कि यहां कोविड के केसेस आ रहे हैं. भीड़ अधिक होने की वजह से लोग आसपास सटकर खड़े होने को मजबूर थे. हमने किसी तरह कोना खोजा और अलग अलग बैठ गए. दोपहर बाद जब हमारा नंबर आया तो डॉक्टर ने हमें न तो ढंग से चेक किया और न ही सही से बात की.

डॉक्टरों ने बुरा व्यवहार किया
आठवां महीना जिस महिला का लगा था, जो हमारे साथ गई थीं, उन्हें दूर दूर से देखा और बस बोला कि अभी तुम्हारा टाइम नहीं है और एक महीने बाद आना. काफी बुरा व्यवहार किया हमारे साथ.  दूसरे लोगों को भी डांट रहे थे और बीमार और जरूरतमंद लोगों के साथ ऐसा गंदा व्यवहार किया जा रहा था. एक गर्भवती महिला के पेट में दर्द था और उन्हें यहां के डॉक्टरों ने बाकायदा भगा दिया. हमारे पास मौजूद डॉक्युमेंट्स भी जल्दी जल्दी देखे और दवाएं लिख दी गईं. कुछ टेस्ट बोले जिन्हें करवाकर जब हम अगली बार गए तो जिस डॉक्टर ने देखा, वह बोलीं कि यहां न आइए.

मालवीय नगर मेट्रो के पास रेनबो हॉस्पिटल
दो तीन लोग एक बेड पर हैं. बच्चे का इम्युन सिस्टम वीक हो जाएगा. अगर आप अफोर्ड कर सकते हैं तो अच्छा तो यह होगा कि आप किसी प्राइवेट हॉस्पिटल में डिलीवरी करवाएं. हमें सलाह सफरदरजंग हॉस्पिटल की भी दी गई लेकिन हम इसलिए नहीं गए क्योंकि वहां कोरोना के केसेस बहुत अधिक थे. हमने सुना था कि वहां बेड भी परमानेंट बेसिस पर मिलता नहीं है. अब हम मालवीय नगर मेट्रो के पास रेनबो हॉस्पिटल में दिखा रहे हैं. यहां डिलिवरी ही होती है और बच्चों का ही इलाज होता है. अब हम यहीं दिखा रहे हैं और आगे का पूरा प्रोसेस यहीं करवाएंगे. क्योंकि, यहां सफाई भी है और लग रहा है कि सब ठीक रहेगा.

(19 मई को Hindi News18 (network 18) में पब्लिश मेरा आर्टिकल)

Thursday, May 14, 2020

नेटफ्लिक्स (Netflix) की वेबसीरीज Messiah अपने समय की एक मजबूत कथा


एक ऐसे समय में जब विश्वभर में ईश्वर और धर्म पर स्वतंत्र रूप से बात करना कोई बहुत आसान नहीं रह गया है, मेसीआ (Messiah) का बनाना, बन पाना, और एक पॉपुलर ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स (Netflix) पर दिखाया जाना, जिगरे का काम है. हालांकि देश और काल से इतर, हम सब जानते हैं कि इतिहास सिनेमाई दिलेरी का दसियों बार गवाह रहा है. जानकारी के लिए बता दूं कि मेसीआ पर प्रतिबंध लगाने के लिए जॉर्डन में जोर-शोर से आवाजें उठ रही हैं. कोई हैरानी न होगी यदि जब तक यह लेख आप तक पहुंचे, वहां यह बैन हो चुकी हो।  बात आखिर अमानत में खयानत जैसी जो है.

netflix webseries messiah review in hindi

मेसीआ को हम यहां मसीहा ही बोलें तो बात करने में थोड़ी आसानी होगी. ऑस्ट्रेलियाई पटकथा लेखक और निर्देशक मिशेल पेट्रॉनी (Michael Petroni) ने इस थ्रिलर को बनाया है और निर्देशित किया है जेम्स मैट्यूग (James McTeigue) और केट वुक (Kate Wood) ने. मसीहा डेल्युजन से इल्यूजन और यथार्थ से परिकल्पनाओं तक हमें ऐसे उठा- उठाकर पटकती है कि इसे देखते हुए हम सवाल रचते हैं, जिनके जवाब देते हैं और जवाबों को खारिज कर फिर से सवाल कर लेते हैं. मगर यह नया सवाल पिछले सवाल से अलग होता है. मसीहा को गूगल किए बिना सीधा देखना शुरू कर देना, इसकी उठापटक को जीना है. किसी किताब का अंत यदि आप जान लें तो उसे पढ़ने का रोमांच समाप्त हो जाता है और रोमांच ही तो जीवन का नमक है! नहीं क्या?
कहानी का मोटा-मोटी प्लॉट यह है...

खैर, 10 लंबे-लंबे एपिसोड्स की एक सीरीज जिसका नाम मेसीह है नेटफिल्क्स की हालिया प्रस्तुति है. प्रत्येक एपिसोड 40 से 50 मिनट लंबा. सीरीज की शुरुआत में ही स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि यह पूरी तरह से काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है. इसका धर्म, व्यक्ति विशेष, चरित्र से कोई लेना देना नहीं है. सीरीज को 1 जनवरी 2020 को रिलीज किया गया. सीरीज का पहला दृश्य सीरिया (Syria) की राजधानी दमासकस (Damascus) शहर ले चलता है जहां ईसा मसीह के लौट आने की हवा उस वक्त बह चलती है जब एक 'रहस्यमयी' शख्स एक टोरनेडो से लोगों को 'बचाता' है. इस हवा को सबसे पहले भांपने वाली CIA एजेंट ईवा गैलर (Michelle Monaghan) के साथ हम इस सीरीज की परत दर परत खोलते हैं. आज के तार्किक समाज के बीच 'ईसा मसीह की वापसी' तमाम शक शुबहा खड़े करती है और इस बीच होती हैं कुछ घटनाएं. जिन्हें, अंतरराष्ट्रीय समाज का एक बड़ा धड़ा, जो इस अल-मसीह का फॉलोअर बन रहा है, चमत्कार कह रहा है जबकि दूसरा कंफ्यूज्ड (जी हां, कंफ्यूज्ड) धड़ा खतरनाक मान रहा है. आम लोगों के बीच जब आप इस अल-मसीह पुकारे जाने वाले शख्स के मसीहा होने पर जरा 'भरोसा' सा करने लगते हैं, तब अगले ही पल मसीहा के शातिर कोन-मैन होने का शक आपको बर्रा देता है. और, आखिरी एपिसोड तक सस्पेंस और थ्रिलिंग अनुभवों के बीच क्रेश हुए क्लासिफाइड एरोप्लेन के बाहर मसीहा और बाकी दो लोगों के साथ आप भी इसकी अगली सीरीज के आने का इंतजार शुरू कर देते हैं.

किसी को हुई आपत्ति किसी ने ध्यान ही नहीं दिया...

मेन कैरेक्टर अल-मसीह द्वारा अमेरिकी प्रेजिडेंट से सीक्रिट मीटिंग के दौरान जो मांग की जाती है, उसके बाद दर्शक को लगता है- ओह तो यह है पूरा मामला. लेकिन आखिरी एपिसोड तक आते आते दर्शक की यह सोच भी 'Shit Yaar' में बदल जाती है. अल- मसीह की खास बात यह है कि यह सभी धर्मों के मौजूदा रूप और एग्जेक्यूशन पर वाजिब लगने वाले कुछ सवाल खड़े करता है. यह न बाइबल का नाम लेता है न कुरान का और न ही किसी और धर्म का लेकिन इन धर्मों की धर्म पुस्तकों में लिखे गए कोट्स का जिक्र वह लगातार करता है. वैसे शुरुआती एपिसोड से शुरू ये धारदार कोट्स आपको भी शानदार लग सकते हैं. क्रिश्चिएनिटी या यूं कहें कि ईसा मसीह के माता- पिता पर CIA एजेंट द्वारा काफी अधिक तीखे शब्दों में सहज रूपेण टिप्पणी करना, बड़े वर्ग को खला नहीं... सुखद हैरानी हुई मुझे. हालांकि गूगल ने बताया कि एक धर्म विशेष के ऑडियंसेस द्वारा ट्रेलर को लेकर आपत्ति जताई गई थी. वैसे यहां यह भी बताते चलें कि सीरीज की शूटिंग का बड़ा हिस्सा जॉर्डन में ही फिल्माया गया है जहां इसे प्रतिबंधित करने की मांग चल रही है. सीरीज जिस तरह से बनाई गई है, यह काल्पनिकपन की ओर तकनीकी रूप से उलझाती नहीं. इसलिए लगता कुछ ऐसा है, जैसे हालिया दौर (2019) के घटनाक्रम की पड़ताल की जा रही है.

तो क्या सचमुच ईसा मसीह लौटेंगे? कभी यह अल-मसीह एक कुत्ते को मार देता है और कभी यह गोली खाए एक बच्चे को 'जीवित' कर देता है. वह अपने फॉलोअर्स की परवाह नहीं करता. और, उससे संबंधित किसी भी स्थापित होते दीख रहे विचार को बेदर्दी से तोड़ चलता है. सुना है, ईसा मसीह भी स्टीरियोटाइप तोड़ा करते थे. यह अल-मसीह कभी लोगों को इस्तेमाल करता हुआ लगता है किसी खास एजेंडे के तहत, कभी वह धर्म की पुर्नस्थापना के लिए दुनिया भर के बॉर्डर्स की समाप्ति चाहता हुआ एक मानवतावादी लगता है. मसीह में एक और कैरेक्टर है जिबरिल. जिबरिल ने ही इस शख्स को अल-मसीह का नाम दिया. ऐसा लगता है सीरीज का अगला भाग इस कैरेक्टर के इर्द गिर्द घूमेगा क्योंकि जहां अल-मसीह अब शक की बेड़ियों में बंध गया है, जिबरिल आखिरी एपिसोड आते आते 'सेकंड कमिंग' का असल हकदार सा लगने लगता है जिस पर कम स कम शक की जंजीरें फिलहाल नहीं दिखाई गई हैं.

और क्या मिलेगा...

मसीहा को लिखने और निर्देशित करने वालों का विभिन्न धर्मों और धार्मिक पुस्तकों को लेकर तार्किक ज्ञान उच्चस्तरीय न रहा होगा तो इतना शानदार धारदार थ्रिलर लिखना असंभव था. सीरीज का हर कैरेक्टर अपनी जगह पर फिट है और कहीं कोई ओवर-डू नहीं दिखता. सीरीज में सीआईए जैसे टफ जॉब होल्डर्स की रिसती निजी जिन्दगियां, सोशल मीडिया की ताकत (या कि कहें, इंफ्लूएंस), अकेला होता जा रहा समाज, प्रमुख धर्मों के हार्ड कोर फॉलोअर्स के हिलते हुए विश्वास, राजनीतिक उठापटक और अमेरिकी राजनीतिक गलियारों पर भी रोशनी डालती चलती हुई यह सीरीज, नो डाउट, देखी जानी चाहिए, केवल तभी जब आप कुछ हटकर देखना चाहते हों. मगर इसी के साथ, यह एक सवाल भी छोड़ जाती है कि क्या एक सच्ची कहानी का नाट्य रूपांतरण है?

PS: इस बीच ये बता दूं कि कुछ दिन पहले ही मेसीहा की टीम ने इंस्टाग्राम पर बताया कि कोविड 19 के इस दौर के बाद भी मेसीहा का अगला पार्ट नहीं रिलीज होगा. जबकि, तैयारियां पूरी थीं..  खैर, हम इस टीम को शुभकामनाएं देते हैं..

(20 जनवरी को News18 Hindi (Network18 Media) में प्रकाशित मेरा लेख)

Wednesday, May 13, 2020

कविता: उफ्फ ये औरतें...

Pooja Prasad Poems

बहुत प्यार आता है हर उस औरत पर
जो आवाज ऊंची कर
डबल विनम्रता से
शुद्ध मर्दों के घेरे में
घुसेड़ने की कोशिश करती है
बस अपनी थोड़ी सी बात
बस अपनी थोड़ी सी चिंता
बस अपनी थोड़ी सी जानकारी

प्यार तो उस पर भी आता है
जो चुनती है खामोशी
रखती है सिर ऊंचा
और नाक ज़रा ज्यादा ही पैनी
मगर रहती है चुप
करती है केवल खुद पर विश्वास
और करती है खारिज स्साला सारे ढकोसले
दरअसल कभी पढ़ा था उसने
'मेरी पीठ पर सिर्फ मेरा ही हाथ है....'

औरतों की दुनिया की बातें जब होती हैं
मर्दों की दुनिया मचल मचल उठती है
जैसे कोई फेवरिट डिश
सामने आ पटकी हो
जैसे कोई बचपन की शरारत
बुढ़ापे में जीनी शुरू कर दी हो
बदलता तो वक्त है
बदलते नहीं हैं लोग
जहां होते हैं दलदल
वहां रहते ही हैं दलदल
साल दर साल
दशक दर दशक

मैं इंतजार करती हूं
जल्द से जल्द पीढ़ियां बदलने का
जल्द से जल्द जरूरत हो खतम
इन औरतों से एकस्ट्रा प्यार जताने की
जल्द से जल्द जरूरत हो खतम
ऐसी खामोशी और ऐसी डबल विनम्रता की.

Tuesday, May 12, 2020

कुंभ से लेकर कोरोना काल तक जनसेवा में जुटी हुईं PCS ऋतु सुहास (Ritu Suhas)

कोरोना काल (covid19) कोई आसान समय नहीं है. दुनिया के किसी भी शख्स के लिए यह अनिश्चितकालीन युद्ध का एक दौर है. और, इस बार यह युद्ध है भी तो एक ऐसे दुश्मन के खिलाफ, जो अदृश्य है. इस युद्ध में यूं तो हर कोई निजी स्तर पर योद्धा है, लेकिन कुछ योद्धा ऐसे हैं जो अपने खुद की जान और स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर जनता की सेवा में लगे हुए हैं. जरूरी सेवाओं में लगे हुए देश के सरकारी और गैरसरकारी अफसरों को हमारा सैल्यूट है. हम पिछले कुछ दिनों से आपको 10 मई को होने वाले मदर्स डे के मौके पर ऐसी मांओं से अवगत करवा रहे हैं जो लगातार जनता के बीच रहकर जनहित के कार्य कर रही हैं. परिवार, बच्चों और खुद को प्रायॉरिटी लिस्ट में जनसेवा के बाद रखना वाकई दिलेरी का काम है. आइए आज हम आपको मिलवाएं 2004 बैच की पीसीएस अधिकारी ऋतु सुहास (Ritu Suhas) जो लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी में सेक्रेट्री के पद पर कार्यरत हैं और दो बच्चों की मां भी हैं.

covid 19 ritu suhas article by pooja prasad


लखनऊ में सैनिटाइजेशन से लेकर लंच बनवाने, पैक करवाने और बंटवाने का बीड़ा उठाए हुए हैं ऋतु. कहती हैं, कोरोना क्राइसिस में काम ज्यादा है लेकिन यही तो समय है जब पब्लिक की हमसे उम्मीदें ज्यादा होती हैं और हमें अपना काम और अच्छे से करना होता है. बाकी वर्क प्रोफाइल ऐसा है कि कभी प्रशासनिक कार्य करना है तो कभी लॉ एनफोर्समेंट का. कहती हैं, पिछले महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद में म्यूनिसिपिल डिपार्टमेंट में पोस्टेड थीं तो करोड़ों लोगों के लिए हाइजीन की व्यवस्था करना काफी मुश्किल काम था लेकिन हमने ये किया और अच्छे से कर पाए.

बता दें कि ऋतु सुहास पिछले साल की मिसेज 2019 भी रह चुकी हैं. सुहास की पहली पोस्टिंग मथुरा में एसडीएम के पद पर हुई थी. इसके बाद वे जौनपुर, आगरा, सोनभद्र जैसी कई जगहों पर तैनात रहीं. अपने कार्यकाल में उन्होंने पद पर रहते हुए गर्भवती महिलाओं के लिए मोबाइल ऐप्लिकेशनन 'प्रेग्नेंसी का दर्पण', बच्चों के लिए मोबाइल ऐप 'कुपोषण का दर्पण' और शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों के लिए 'बूथ दोस्त' नामक ऐप भी बनाईं जिन्हें बाद में सरकार ने ही इसे टेक ओवर कर लिया था.

covid 19 ritu suhas article by pooja prasad


पुरुषों पर सिर्फ कमाने का प्रेशर, औरतों करती हैं मल्टीटास्किंग

मां का रोल इस बड़े जिम्मेदार पद पर रहते हुए कैसे कर पाती हैं, पर बोलीं, भारतीय महिलाएं मल्टीटास्किंग करती हैं और वाकई वे सैल्यूट के काबिल हैं क्योंकि वे हमेशा ही सुपरवीमन के तौर पर काम करती देखी गई हैं. हम देखते हैं कि इस समाज और देश में कभी भी पुरुषों पर इस तरह का कोई खास प्रेशर नहीं रहा और आज भी नहीं है. उन पर केवल कमाने का प्रेशर है. औरतें चूंकि कई तरह के प्रेशर एक साथ हैंडल करती ही हैं तो वह टाइम मैनेजमेंट भी पुरुषों के मुकाबले बहुत बेहतर तरीके से कर पाती हैं. सुहास कहती हैं कि आप देखिए न कि कैसे औरतें घर में ही ब्यूटीपॉर्लर भी खोले हुए हैं और बच्चों को भी पालती हैं, परिवार और घर के सारे काम भी करती हैं.

वर्किंग मांओं के लिए निजी अनुभव से कुछ सुझाव...

सुहास कहती हैं कि न सिर्फ वह बल्कि हम औरतें अपनी प्रॉयरिटी के हिसाब से काम करती हैं. टाइम वेस्ट नहीं करती हैं जैसे कि मैं खुद टीवी नहीं देखती. बच्चों को टाइम देती हैं. वह कहती हैं कि बच्चों को क्वालिटी टाइम देना चाहिए. कोशिश करें कि जैसे ही मौका मिले, खेलें उनके साथ. अपने निजी अनुभव और तौर तरीके शेयर करते हुए सुहास बताती हैं, सोने से पहले रोज एक गाना सुनाती हूं मैं अपने बच्चों को आजकल... वे बहुत एन्जॉय करते हैं इसे. बच्चों को बेडटाइम पर साथ देना चाहिए. आपको खुद भी अच्छा महसूस होगा.

covid 19 ritu suhas article by pooja prasad
रितु सुहास


कहती हैं कि मेरे दो बच्चे हैं. पहले सोचती थी कि एक बच्चा ही पैदा करूंगी ताकि जॉब के साथ- साथ उसे अच्छे से बेहतर विकास के मौके और परवरिश दे पाऊं. लेकिन फिर मुझे लगा कि वह एकदम अकेला न रह जाए कहीं... उसके साथ बहन या भाई होगा तो उसके पास एक साथ होगा. इसलिए दूसरे बेबी का प्लान किया. बच्चे को पैदा करना बड़ा काम नहीं, उसे ढंग से पालना बड़ी जिम्मेदारी है.


Podcast: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं का मेरा पॉडकास्ट

  हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...