
उजड़ते मकान
उजड़ते अरमान
जीवित रही सिर्फ जिजीविषा
तुममें या फिर सिर्फ उसमें
बाढ़ के पानी ने किया सब समान (?)
समाप्त हर भेद
न कोई ऊंच
न कोई नीच
यह प्रकृति का कोप
या प्रकृति का फिर फिर व्याख्यान...
हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...
2 comments:
thode me bahut kuch keh diya.
achcha hai.
Rakesh Kaushik
Law of nature, it is related with nature and its laws. Beautiful!! And related with Bihar flood. Nature and people together in this poetry. Excellent!!!!
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