Monday, February 18, 2013

एक कविता


Eyes

Thoughts,
that will soon be free,
of me.
Come,
Let’s sit together till then,
and look into each other’s eyes.


by Hutashan Vajpeyi

Monday, February 4, 2013

पीला पतझड़ आने दो

गूगल साभार
कितनी ठंड थी। इस ठंड को गिरते देखना और जमीन पर पसर जाना अब बुरा लगने लगा था। मन करता था, हाथ पकड़ कर उठा दूं और कहूं- चलो डार्लिंग तुम्हारा काम हो गया। चक्र पूरा हो गया। अब जाओ न बाबा। किसी के घुटनों का दर्द बढ़ गया, तुम्हारे आने से। किसी का पेट दर्द हो गया, तुम्हारे टिके रहने से। किसी की यादें लौट-लौट आईं और आंसू बह-बह आए, तुम्हारे लंबा रह जाने से। किसी के लिए साल पूरा हो गया किसी बात का- किसी चीज का। किसी की साल भर की प्रेमगिरह (लव ऐनिवर्सिरी) हो गई।

लेकिन ठंड थी कि मैं जिधर का रुख करती, वहां से चुपके से खिसक लेती। या फिर सिर्फ निशान छोड़ जाती। इस निशान को मैं अपनी शॉल से ढक लेती। उस निशान की मालिकन ठंड से निपटना है,यह सोचकर मैंने रातों को चहलकदमी शुरू कर दी। शातिर ठंड से निपटना जो था।

छत थी। इतनी बड़ी थी कि पहली बीयर पार्टी वहीं हुई थी। तब भी ठंड यूं ही पसरी हुई थी। ठंड में बीयर पीकर हम और ठंडे हो गए थे। लगता था, ठंड सहेली है और मजे ले रही है। छत से दिखते दूर दूर तक के खाली बीहड़ टाइप मैदान में किंगफिशर की केन्स उछाल दी थीं। ठंड ने ठंडा नहीं किया होता तो आम मौसम में इतनी जुर्रत न कर पाते हम। जीवन की पहली बीयर थी। नशे में माल्या को हमने दुआएं दे डाली थीं।

अबकी बार कोई बीयर पार्टी नहीं है। लेकिन ठंड है। यूं पसर रही है जैसे इसने बीयर नहीं, वोदका गटक रखी हो। अरे सुन ठंड, जाओ न यार। क्यों वक्त बरबाद कर रही हो। पीला मौसम आने दो। पतझड़ आने दो। तुम्हारा होना पतझड़ डिले कर रहा है। तुम्हारी वजह से मैं इलाहाबाद नहीं जा पाई हूं। तुम मेरी वजह से कुछ रोकती हो क्या अपना। तोड़ती हो वक्त से पहले कोई सपना। नहीं न। तुम ठंड जो हो। परवाह नहीं न तुम्हें। न घुटनो के दर्द की। न किसी पेट दर्द की। तुम ठंड क्यों हो, मैं क्यों नहीं हो। जाओ तुम। मुझ ठंड हो जाने दो। जाओ बाबा.... 

Podcast: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं का मेरा पॉडकास्ट

  हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...