Saturday, September 27, 2008

मेरे बाजू वाली खिड़की


कब्रें

अपने होने का प्रमाण देती हैं
चलते फिरते लोगों में

कब्रें

फिर फिर दोहराती हैं
वही सच्चाई
कि सबको घुलना मिट्टी में

कब्रें

चुपचाप ही
इंसान सी
जीवित की तरह
सहती हैं धूप धुंआ अंधड़ पानी

कब्रें

बाईं ओर की खिड़की से झांकती सी
मुझमें,
कहती हैं
जीवन मृत्यु से बड़ा सत्य!


कब्रें

नाम की पट्टी ओड़े
मौत के बाद भी
ढोती हैं देह का दंश
सतत...सनातन...अंतहीन

7 comments:

शोभा said...

नाम की पट्टी ओड़े
मौत के बाद भी
ढोती हैं देह का दंश
सतत...सनातन...अंतहीन
बहुत सुंदर लिखा है पूजा जी.

MANVINDER BHIMBER said...

नाम की पट्टी ओड़े
मौत के बाद भी
ढोती हैं देह का दंश
सतत...सनातन...अंतहीन
ati sunder

Arvind said...

भावनाए व्यक्त करने का ढंग बहुत अच्छा है

एसे ही लिखते रहिये

बहुत बहुत शुभकामनाये
Arvind Khare

ravindra vyas said...

marmik!

Dr. Ashok Kumar Mishra said...

poojaji,
jeevan -mratyu key sach ko aapnney prkhar roop sey abhivyakt kiya hai.

http//www.ashokvichar.blogspot.com

pranava priyadarshee said...

उम्दा. पूजा, जारी रखिए...

प्रणव

Anonymous said...

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