Thursday, September 11, 2008

एक टुकड़ा


अगर न होते सपने, तो न होती संवेदनाएं...
अगर न होते आघात तुमसे, तो न होता विश्वास तुम पर...
क्योंकि सपनों की जमीन तुम हो
सपनों का आकाश तुम हो
और हो तुम विश्वास की कच्ची जमीन पर हौले से समाती बारिश की बूंद

जो बस गई है, रच गई है, मुझमें यानी तुम्हारे अंश में...

5 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

अगर न होते सपने, तो न होती संवेदनाएं...
अगर न होते आघात तुमसे, तो न होता विश्वास तुम पर...

बहुत ख़ूब...

हम वो फ़िरदौस नहीं हैं जो आप समझ रही हैं...

फ़िरदौस ख़ान said...

अगर न होते सपने, तो न होती संवेदनाएं...
अगर न होते आघात तुमसे, तो न होता विश्वास तुम पर...

बहुत ख़ूब...

हम वो फ़िरदौस नहीं हैं जो आप समझ रही हैं...

Unknown said...

sundar prastuti . poojaji .likhti rahiye

Shastri JC Philip said...

"अगर न होते सपने, तो न होती संवेदनाएं..."

शायद जीवन के कई पडावों पर यह एक सत्य है!!

Pooja Prasad said...

utsaahvardhan hetu dil se bahut bahuttttttttttttttttt dhanyawaad!!

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