Saturday, September 13, 2008

जो जीवित



उजड़ते मकान
उजड़ते अरमान
जीवित रही सिर्फ जिजीविषा
तुममें या फिर सिर्फ उसमें

बाढ़ के पानी ने किया सब समान (?)
समाप्त हर भेद
न कोई ऊंच
न कोई नीच

यह प्रकृति का कोप
या प्रकृति का फिर फिर व्याख्यान...

2 comments:

Rakesh Kaushik said...

thode me bahut kuch keh diya.

achcha hai.

Rakesh Kaushik

Alok Nandan said...

Law of nature, it is related with nature and its laws. Beautiful!! And related with Bihar flood. Nature and people together in this poetry. Excellent!!!!

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