Tuesday, September 2, 2008
कंपेटेबिलिटी...नारी स्वतंत्रता...
मेरी एक मित्र है। शादीशुदा है। अक्सर कहती है, बच्चे न होते तो अमन (पति) का साथ कब का छोड़ देती।
सुशीक्षित है। संपन्न परिवार से है। सोशल सर्कल में अच्छी-खासी पहचान है। प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन भी है। विवाहपूर्व नौकरी करती थी, बाद में छोड़ दी। अपनी और पति की सहमति से। उम्र भी तीस से कम(तो नौकरी के लिए कथित आउटडेटेड भी नहीं)।
शादी के छह बरस बीत गए। तीन बरस हो गए, मुझे ये सुनते हुए कि अगर बच्चे न होते तो पति को छोड़ देती। वजह? पति और पत्नी के बीच 'इमोशनल कंपेटेबिलिटी´ नहीं है। वजह पर आपको हैरानी नहीं होगी। मगर, अगर यह बताऊं कि दोनों का प्रेम विवाह है तब...? क्या तब भी हैरानी नहीं होगी...?
मेरे लिए यह चौंंकाने वाला तथ्य था, तब जब मुझे यह नहीं पता था कि भावनात्मक रूप से एक दूसरे की जरूरतों को न समझने और न पूरी करने वाले युवक-युवती भी प्रेम कर विवाह कर लेते हैं। इधर ऎसे कई मामले देखने को मिले! मुझे लगता रहा है प्रेम विवाह का आधार पैसा या सामाजिक स्तर या सामाजिक अपेक्षाएं हों या न हों, मगर इमोशनल कंपेटेबिलिटी अवश्य ही होती है।
विवाह के छहों साल बीतते- बीतते जब भावनात्मक खालीपन इतना साल जाए कि रिश्ते में रूके रहने के लिए बच्चों का हवाला खुद को देना पड़े तो क्या यह उस रिश्ते के टूट चुकेपन का ही प्रमाण नहीं है? तब ऐसा क्यों होता है कि समस्या सुलझाने के लिए या अंततःन सुलझने पर फैसले नहीं लिए जाते...
कृपया बताएं आप क्या सोचते हैं...कि एक पढ़ी- लिखी, नौकरी सकने योग्य महिला भी 'बच्चों की खातिर´पति से अलग नहीं होती। क्योंकर? क्या वाकई बच्चे कभी- कभी मांओं के पांव में परतंत्रता की बेिड़यां बन जाते हैं... या उन तमाम समस्याओं और कथित लांछनों को अवाएड करने के लिए आड़ लेना ज़रूरी हो उठता है?
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5 comments:
आपने महत्वपूर्ण बात उठाई पूजा जी। प्रेम विवाह फैशन हो गया है ऐसा कहें तो शायद ग़लत नहीं होगा। 'लव एट फर्स्ट साईट' सुनने में बहुत अच्छा लगता है लेकिन 'इमोशनल कम्पैटिबिलिटी' कैसे जांचेंगे एक नज़र के बाद?
आपके सवाल का जवाब मेरे हिसाब से तो ये है कि आपकी मित्र सिर्फ़ अपनी कमजोरी को छिपाने के लिए बहाना बना रही हैं!
@ अभिषेक जी, दो बातें।
पहली, जो बात कही गई है, वह अधिक मायने रखती है, यहां किसी एक केस की बात है ही नहीं। साथ ही, लव एट फस्र्ट साइट ही नहीं, लव आफ्टर लांग साइट के बाद की उपजी परिस्थिति का उदाहरण है यह।
रही बात कमजोरियों को छिपाने की, तो एक रिश्ते से बाकायदा घोषित तौर पर अलग होने या टूटने के लिए हिम्मत की जरूरत होती है न कि कायरता की। कमजोरियों को छिपाने का काम कायर करते हैं, हिम्मती नहीं।
मगर अभिषेक जी यहां सवाल यह है कि विवाह के तमाम तंतु टूट जाने या सबसे महत्वपूर्ण तंतु टूट जाने के बाद भी महिला के लिए फैसला ले कर अलग हो जाना इतना दुश्कर क्यों होता है? बदलते समाज में ऐसी चीजें क्यों नहीं बदल रही हैं? परिवार नामक संस्था बनी rahe, मगर तब तक जब तक वह घुटन न पैदा करे। घुटन पैदा करने वाली कोई भी इकाई अपना औचित्य की खो बैठती है...
मुझे लगता है कि दोनों में अहं की मात्रा बहुत अधिक है। दोनों यह मान कर क्यों नहीं चलते कि दोनों को जीवन भर साथ निभाना है। चलो बच्चों के ही खातिर।
और दोनों ही एक दूसरे को समझने और कुछ-कुछ खुद को बदल कर एक दूसरे को संतुष्ट करने का प्रयास करें तो बात बन जाएगी। कमियाँ किस में नहीं होती। दो विपरीत विचारधारा वाले व्यक्ति भी जीवन भर साथ निभा सकते हैं। बस एक दूसरे के विचारों का आदर करना सीख लें। भले ही उन्हें मानें नहीं।
पूजा जी ये रिश्तों की बेड़ियां है बच्चों का हवाला तो सिर्फ अपने को दिलासा देना है वो भी झूठी। छोड़ने को वो चाहें तो कल ही छोड़ सकती है। लेकिन रिश्ते कई बार आप को ये करने नहीं देते चाहे वो बच्चों का हो या पति के साथ लिए ७ फेरों का। चाहे लव मैरिज ही क्यों ना हो। अहं को त्याग कर दोनों बैठें तो शायद हल सामने आ जाए।
pooja ji, mujhe lagta hai dono k rishte main na to emotions ki kami hai aur na hi dono ek doosre se sahi mayne main alag hona chahte hain, aapki dost khas taur se. ye rishta emotions pe hi bana tha aur meri samajh me emotional bonding hi hai jo unhain alag nahi hone de rahi (shayad degi bhi). bachche ka naam leker to wo apni us bhawna ko chhipa rahi hain.... mujhe aisa lagata hai shayad. kam shabdon main itna hi samjha sakta hun..bas
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