Friday, July 11, 2008

एक घंटी घनघनाती सी


क्या वाकई मोबाइल फोन कोई `लकड़बग्धा` है जो हमारे आपके जीवन में चुपचाप घुस आया है?

हाल की दो खबरें बताती हूं। पहली और एकदम हालिया खबर के अनुसार, केरल के एक स्कूल में एक छात्रा को मोबाइल चैक करने के नाम पर क्लास में निर्वस्त्र कर दिया गया था। अब राज्य सरकार सभी स्कूलों में मोबाइल प्रयोग 'कानूनन' प्रतिबंधित करने वाली है। दूसरी खबर के मुताबिक, बर्लिन में सरकारी एजेंसी ने करीब 7 सालों में 50 सर्वे करवा यह घोषित किया कि मोबाइल कोई शारीरिक नुकसान नहीं पहुंचाता है। उसके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभावी साबित होने के सभी दावे निराधार हैं और बेबुनियाद हैं।

दूसरी खबर से इतर, हम सब अक्सर मोबाइल की किरणों के शरीर पर कई तरह के दुष्प्रभावों के बारे में पढ़ते हैं, सुनते हैं। ऐसे में बर्लिन में जारी यह रिपोर्ट खुशखबरी दे सकती थी मगर नहीं दे पाई। इसलिए नहीं दे पाई क्योंकि रिपोर्ट के बाद ही यह कहा जाने लगा (इसमें कितनी सच्चाई है, नहीं जानती) कि जर्मनी सरकार के सर्वे को मोबाइल सेवाप्रदाता कंपनियों ने वित्तपोषित किया है। यदि ऐसा है तो जाहिर है नतीजे पार्शियल होने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।

जब मैं आईएएनएस में कार्यरत थी तब मोबाइल के सामजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव पर एक स्टोरी की थी।
कई लोगों से और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के अलावा इस संदर्भ में डॉक्टरों से भी बात हुई। सभी ने अति को हानिकारक बताया। सभी की बातों का निचोड़ था कि मोबाइल के आने से जीवन में कई परिवर्तन हुए हैं। इनमें सकारात्मक कम हैं नकारात्मक अधिक।

खैर। यहां सवाल विज्ञान के वरदान या अभिशाप होने का नहीं है। बल्कि, एक तकनीक के अति, विभिन्न और भौंचक्क कर देने वाले उपयोग का है। क्या वाकई स्कूलों (ऑफिसों या कहीं और स्थान विशेष पर) मोबाइल फोन के प्रयोग को बैन कर देना चाहिए? क्या मोबाइल की आवश्यकता को ले कर बच्चों और उनके अभिभावकों के तकोZं में कोई दम है? क्या प्रतिबंध ही एकमात्र उपाय है? ....

मुझे लगता है कि किसी चलन या परंपरा या आदत से यदि सामूहिक हानि हो रही हो, तो पहले समीक्षा की जानी चाहिए कि असल वजह वह परंपरा या चलन विशेष ही है या कुछ और। कहीं हम असल समस्या से अनभिज्ञ तो नहींण्ण्ण्ण्। इसके बाद इस बाबत सरकार समेत व्यक्तिगत व पारिवारिक स्तर पर कदम उठाया जाना जरूरी होगा। मेरा मानना है कि इस बाबत सरकार या प्रशासन को कड़ाई से लागू करने वाले 'जायज' नियम बनाने चाहिए। हम लोगों को भी जरूरी गाइडलाइन स्वयं तैयार करनी होगी जिस पर हम अमल भी करें।

2 comments:

Manish Kumar said...

वैसे मोबाइल स्कूल की कक्षाओं में पठन पाठन के समय वर्जित रहे इसमें मुझे गलत कुछ नहीं दिखता है। पर इस तरह के फैसले अभिभावकों और शिक्षकों को मिल कर लेने की जरूरत है।

Anonymous said...

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