कोरोना काल (covid19) कोई आसान समय नहीं है. दुनिया के किसी भी शख्स के लिए यह अनिश्चितकालीन युद्ध का एक दौर है. और, इस बार यह युद्ध है भी तो एक ऐसे दुश्मन के खिलाफ, जो अदृश्य है. इस युद्ध में यूं तो हर कोई निजी स्तर पर योद्धा है, लेकिन कुछ योद्धा ऐसे हैं जो अपने खुद की जान और स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर जनता की सेवा में लगे हुए हैं. जरूरी सेवाओं में लगे हुए देश के सरकारी और गैरसरकारी अफसरों को हमारा सैल्यूट है. हम पिछले कुछ दिनों से आपको 10 मई को होने वाले मदर्स डे के मौके पर ऐसी मांओं से अवगत करवा रहे हैं जो लगातार जनता के बीच रहकर जनहित के कार्य कर रही हैं. परिवार, बच्चों और खुद को प्रायॉरिटी लिस्ट में जनसेवा के बाद रखना वाकई दिलेरी का काम है. आइए आज हम आपको मिलवाएं 2004 बैच की पीसीएस अधिकारी ऋतु सुहास (Ritu Suhas) जो लखनऊ डेवलपमेंट अथॉरिटी में सेक्रेट्री के पद पर कार्यरत हैं और दो बच्चों की मां भी हैं.
लखनऊ में सैनिटाइजेशन से लेकर लंच बनवाने, पैक करवाने और बंटवाने का बीड़ा उठाए हुए हैं ऋतु. कहती हैं, कोरोना क्राइसिस में काम ज्यादा है लेकिन यही तो समय है जब पब्लिक की हमसे उम्मीदें ज्यादा होती हैं और हमें अपना काम और अच्छे से करना होता है. बाकी वर्क प्रोफाइल ऐसा है कि कभी प्रशासनिक कार्य करना है तो कभी लॉ एनफोर्समेंट का. कहती हैं, पिछले महाकुंभ के दौरान इलाहाबाद में म्यूनिसिपिल डिपार्टमेंट में पोस्टेड थीं तो करोड़ों लोगों के लिए हाइजीन की व्यवस्था करना काफी मुश्किल काम था लेकिन हमने ये किया और अच्छे से कर पाए.
बता दें कि ऋतु सुहास पिछले साल की मिसेज 2019 भी रह चुकी हैं. सुहास की पहली पोस्टिंग मथुरा में एसडीएम के पद पर हुई थी. इसके बाद वे जौनपुर, आगरा, सोनभद्र जैसी कई जगहों पर तैनात रहीं. अपने कार्यकाल में उन्होंने पद पर रहते हुए गर्भवती महिलाओं के लिए मोबाइल ऐप्लिकेशनन 'प्रेग्नेंसी का दर्पण', बच्चों के लिए मोबाइल ऐप 'कुपोषण का दर्पण' और शारीरिक रूप से असमर्थ लोगों के लिए 'बूथ दोस्त' नामक ऐप भी बनाईं जिन्हें बाद में सरकार ने ही इसे टेक ओवर कर लिया था.
पुरुषों पर सिर्फ कमाने का प्रेशर, औरतों करती हैं मल्टीटास्किंग
मां का रोल इस बड़े जिम्मेदार पद पर रहते हुए कैसे कर पाती हैं, पर बोलीं, भारतीय महिलाएं मल्टीटास्किंग करती हैं और वाकई वे सैल्यूट के काबिल हैं क्योंकि वे हमेशा ही सुपरवीमन के तौर पर काम करती देखी गई हैं. हम देखते हैं कि इस समाज और देश में कभी भी पुरुषों पर इस तरह का कोई खास प्रेशर नहीं रहा और आज भी नहीं है. उन पर केवल कमाने का प्रेशर है. औरतें चूंकि कई तरह के प्रेशर एक साथ हैंडल करती ही हैं तो वह टाइम मैनेजमेंट भी पुरुषों के मुकाबले बहुत बेहतर तरीके से कर पाती हैं. सुहास कहती हैं कि आप देखिए न कि कैसे औरतें घर में ही ब्यूटीपॉर्लर भी खोले हुए हैं और बच्चों को भी पालती हैं, परिवार और घर के सारे काम भी करती हैं.
वर्किंग मांओं के लिए निजी अनुभव से कुछ सुझाव...
सुहास कहती हैं कि न सिर्फ वह बल्कि हम औरतें अपनी प्रॉयरिटी के हिसाब से काम करती हैं. टाइम वेस्ट नहीं करती हैं जैसे कि मैं खुद टीवी नहीं देखती. बच्चों को टाइम देती हैं. वह कहती हैं कि बच्चों को क्वालिटी टाइम देना चाहिए. कोशिश करें कि जैसे ही मौका मिले, खेलें उनके साथ. अपने निजी अनुभव और तौर तरीके शेयर करते हुए सुहास बताती हैं, सोने से पहले रोज एक गाना सुनाती हूं मैं अपने बच्चों को आजकल... वे बहुत एन्जॉय करते हैं इसे. बच्चों को बेडटाइम पर साथ देना चाहिए. आपको खुद भी अच्छा महसूस होगा.
रितु सुहास |
कहती हैं कि मेरे दो बच्चे हैं. पहले सोचती थी कि एक बच्चा ही पैदा करूंगी ताकि जॉब के साथ- साथ उसे अच्छे से बेहतर विकास के मौके और परवरिश दे पाऊं. लेकिन फिर मुझे लगा कि वह एकदम अकेला न रह जाए कहीं... उसके साथ बहन या भाई होगा तो उसके पास एक साथ होगा. इसलिए दूसरे बेबी का प्लान किया. बच्चे को पैदा करना बड़ा काम नहीं, उसे ढंग से पालना बड़ी जिम्मेदारी है.
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