कोरोना का संक्रमण काल (Coronavirus Outbrek) पूरी कायनात पर भारी है. ऐसे में वे कोरोना वॉरियर्स (Corona Warriors) सैल्यूट के साथ हमारे शुक्रिया के हकदार हैं जो अपने घर, अपना स्वास्थ्य और अपना चैन दांव पर लगाए इंसानी सेवा में जुटे हुए हैं. उसमें भी दीगर योगदान उन महिलाओं का है, जो न सिर्फ वर्किंग हैं बल्कि आज के इस माहौल में तिगुनी गति से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रही हैं. ऐसी महिलाएं अपने परिवार, अपने बच्चे और खुद को कितनी मुश्किल से 'मैनेज' करती होंगी, यह सोचकर ही सिहरन होती है! सरकारी प्रशासनिक सेवाओं से लेकर मेडिकल लाइन की महिलाएं, सफाई कर्मचारियों से लेकर अन्य सभी जरूरी सेवाओं में कार्यरत ये औरतें सुपरवीमन नहीं, सुपरह्यूमन हैं.
मदर्स डे स्पेशल (Mother's Day Special) सीरीज में हम आपके लिए आज लाए हैं ऐसी ही एक मां के मन की बात, जो एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में हैं और एक छोटी सी बच्ची की मां भी हैं. यूपी के हापुड़ में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) के पद पर कार्यरत अदिति सिंह अपने आप में एक पावरहाउस हैं. पिछले ही महीने हापुड़ की ओर कूच करने वाले दिल्ली से चले लोगों के एक विशाल समूह को वक्त रहते अदिति सिंह की ही टीम ने आइडेंटिफाई किया और क्वारंटाइन किया. केस न बढ़ें. इसके लिए तुरत-फुरत कार्रवाई करके हॉटस्पॉट चिन्हित किए गए और जरुरतानुसार लोगों को होमक्वारंटाइन भी किया गया. अफवाहों को रोकने से लेकर लोगों को जागरूक मुहैया कराने तक का काम करवाया गया.
मूल रूप से बस्ती की रहने वाली अदिति सिंह 2009 बैच की आईएएस अधिकारी ( IAS Officer Aditi Singh, Batch-2009) हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी की गोल्ड मेडलिस्ट अदिति कहती हैं कि घर और काम के घंटों के बीच तालमेल बिठाना असल चुनौती है. लेकिन, इस चुनौती को वह दिन-ब-दिन बेहतर तरीके से हैंडल कर पा रही हैं. कहती हैं, उनकी एक बेटी है और वह शुरू से ही मां के काम को लेकर एक गजब तरीके से अंडरस्टैंडिग थी. धीरे धीरे उसने मेरी प्रफेशनल कमिटमेंट्स के साथ तालमेल बिठा लिया और ऐसा कभी नहीं हुआ कि उसके चलते मेरे अपने कार्य के प्रति समर्पण में कोई दिक्कत आई हो.
हालांकि चैलेंजेस तो होते ही हैं. हर उस मां के, जो बच्चा घर में पीछे छोड़कर आती है. ऐसे में परिवार का एक सपोर्ट सिस्टम ही महिलाओं के लिए मजबूत ढाल बनता है. जब अदिति से इस सपोर्ट सिस्टम की मौजूदगी या गैर मौजूदगी के बारे में पूछा तो वह बोलीं, मेरी मां का सपोर्ट मेरे लिए बहुत मायने रखता है. उन्होंने हर तरह से मुझे सपोर्ट किया और जहां -जहां जरूरत पड़ी, वहां डांटकर सही भी किया. अदिति बताती हैं कि उनकी मां हमेशा चाहती थीं कि उनकी बेटी आईएएस अफसर बनकर समाज सेवा करे. अदित कहती हैं कि सबसे बड़ा अफसोस यही होता है कि वह अपनी बेटी की पढ़ाई-लिखाई के लिए खुद से उतना समय नहीं दे पातीं, जितना कि उनकी मां उनके लिए दिया करती थीं. हालांकि बच्ची की खुशियों, उसकी जरूरतों और उसके स्वास्थ्य से जुड़े किसी भी मोर्चे पर वह खुद अडिग रहती हैं और कोई समझौता नहीं करतीं हैं.
जब मैंने पूछा कि समाज और पुरुषों (घर के पुरुष और बाहर के, दोनों) से क्या उम्मीद करती हैं कि एक मां के लिए वह किस प्रकार सपोर्टिव हो सकते हैं, तो उन्होंने कहा, किसी भी बच्ची के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि उसके माता पिता का बिलीफ सिस्टम क्या है. यानी, क्या वह बेटी को भी बेटे के बराबर ही आगे बढ़ने और समझने-समझाने के समान मौके मुहैया करवाते हैं या नहीं. बात सिर्फ यही नहीं होती कि बच्ची को मानसिक तौर पर मजबूत बनाया जाए और अपने पैरों पर खड़े होने का मौका दिया जाए, बल्कि यह भी जरूरी है कि बेटों को यह सिखाया जाए कि वह घर, बाहर, स्कूल-कॉलेज में भी महिलाओं के साथ सम्मान से पेश आएं. अदिति ने लड़कों की परवरिश की री-कंडीशनिंग पर जोर दिया.
मदर्स डे भले ही एक बहाना भर हो एक सफल करियर वीमन और एक मां से बातचीत करने का लेकिन उनसे प्रेरणा लेना अन्य महिलाओं के लिए लाभदायक ही साबित होगा. जब हमने पूछा कि नौकरीपेशा या बिजनेस कर रही मांओं के लिए कोई संदेश देना चाहेंगी, तो उन्होंने कहा- जो रास्ता आपने चुना है, हो सकता है शुरू में वह कठिनाइयों से भरा हो लेकिन कभी गिव-अप न करें. अपने खुद के स्वास्थ्य और जरूरत को अनदेखा करना भी कतई सही नहीं होता. इसलिए अपना ध्यान रखें. आप ठीक होंगी, स्वस्थ्य होंगी, तभी आप अपना काम सही से कर पाएंगी और परिवार की देख-रेख भी अच्छे से कर पाएंगी.
(6 मई को News18 Hindi में प्रकाशित मेरा आर्टिकल)
aditi singh hapur |
मदर्स डे स्पेशल (Mother's Day Special) सीरीज में हम आपके लिए आज लाए हैं ऐसी ही एक मां के मन की बात, जो एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस में हैं और एक छोटी सी बच्ची की मां भी हैं. यूपी के हापुड़ में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (डीएम) के पद पर कार्यरत अदिति सिंह अपने आप में एक पावरहाउस हैं. पिछले ही महीने हापुड़ की ओर कूच करने वाले दिल्ली से चले लोगों के एक विशाल समूह को वक्त रहते अदिति सिंह की ही टीम ने आइडेंटिफाई किया और क्वारंटाइन किया. केस न बढ़ें. इसके लिए तुरत-फुरत कार्रवाई करके हॉटस्पॉट चिन्हित किए गए और जरुरतानुसार लोगों को होमक्वारंटाइन भी किया गया. अफवाहों को रोकने से लेकर लोगों को जागरूक मुहैया कराने तक का काम करवाया गया.
मूल रूप से बस्ती की रहने वाली अदिति सिंह 2009 बैच की आईएएस अधिकारी ( IAS Officer Aditi Singh, Batch-2009) हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी की गोल्ड मेडलिस्ट अदिति कहती हैं कि घर और काम के घंटों के बीच तालमेल बिठाना असल चुनौती है. लेकिन, इस चुनौती को वह दिन-ब-दिन बेहतर तरीके से हैंडल कर पा रही हैं. कहती हैं, उनकी एक बेटी है और वह शुरू से ही मां के काम को लेकर एक गजब तरीके से अंडरस्टैंडिग थी. धीरे धीरे उसने मेरी प्रफेशनल कमिटमेंट्स के साथ तालमेल बिठा लिया और ऐसा कभी नहीं हुआ कि उसके चलते मेरे अपने कार्य के प्रति समर्पण में कोई दिक्कत आई हो.
हालांकि चैलेंजेस तो होते ही हैं. हर उस मां के, जो बच्चा घर में पीछे छोड़कर आती है. ऐसे में परिवार का एक सपोर्ट सिस्टम ही महिलाओं के लिए मजबूत ढाल बनता है. जब अदिति से इस सपोर्ट सिस्टम की मौजूदगी या गैर मौजूदगी के बारे में पूछा तो वह बोलीं, मेरी मां का सपोर्ट मेरे लिए बहुत मायने रखता है. उन्होंने हर तरह से मुझे सपोर्ट किया और जहां -जहां जरूरत पड़ी, वहां डांटकर सही भी किया. अदिति बताती हैं कि उनकी मां हमेशा चाहती थीं कि उनकी बेटी आईएएस अफसर बनकर समाज सेवा करे. अदित कहती हैं कि सबसे बड़ा अफसोस यही होता है कि वह अपनी बेटी की पढ़ाई-लिखाई के लिए खुद से उतना समय नहीं दे पातीं, जितना कि उनकी मां उनके लिए दिया करती थीं. हालांकि बच्ची की खुशियों, उसकी जरूरतों और उसके स्वास्थ्य से जुड़े किसी भी मोर्चे पर वह खुद अडिग रहती हैं और कोई समझौता नहीं करतीं हैं.
जब मैंने पूछा कि समाज और पुरुषों (घर के पुरुष और बाहर के, दोनों) से क्या उम्मीद करती हैं कि एक मां के लिए वह किस प्रकार सपोर्टिव हो सकते हैं, तो उन्होंने कहा, किसी भी बच्ची के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि उसके माता पिता का बिलीफ सिस्टम क्या है. यानी, क्या वह बेटी को भी बेटे के बराबर ही आगे बढ़ने और समझने-समझाने के समान मौके मुहैया करवाते हैं या नहीं. बात सिर्फ यही नहीं होती कि बच्ची को मानसिक तौर पर मजबूत बनाया जाए और अपने पैरों पर खड़े होने का मौका दिया जाए, बल्कि यह भी जरूरी है कि बेटों को यह सिखाया जाए कि वह घर, बाहर, स्कूल-कॉलेज में भी महिलाओं के साथ सम्मान से पेश आएं. अदिति ने लड़कों की परवरिश की री-कंडीशनिंग पर जोर दिया.
मदर्स डे भले ही एक बहाना भर हो एक सफल करियर वीमन और एक मां से बातचीत करने का लेकिन उनसे प्रेरणा लेना अन्य महिलाओं के लिए लाभदायक ही साबित होगा. जब हमने पूछा कि नौकरीपेशा या बिजनेस कर रही मांओं के लिए कोई संदेश देना चाहेंगी, तो उन्होंने कहा- जो रास्ता आपने चुना है, हो सकता है शुरू में वह कठिनाइयों से भरा हो लेकिन कभी गिव-अप न करें. अपने खुद के स्वास्थ्य और जरूरत को अनदेखा करना भी कतई सही नहीं होता. इसलिए अपना ध्यान रखें. आप ठीक होंगी, स्वस्थ्य होंगी, तभी आप अपना काम सही से कर पाएंगी और परिवार की देख-रेख भी अच्छे से कर पाएंगी.
(6 मई को News18 Hindi में प्रकाशित मेरा आर्टिकल)
2 comments:
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