Tuesday, May 5, 2009
बस बात-1
ईश्वर
तुम से अब प्यार नहीं रहा
और इसलिए तुमसे लाज शरम भी नहीं बची
डर तो तुमसे कभी लगा ही नहीं
पर अब तुमसे रिश्ता टूट सा रहा है
लग रहा है
तुम वाकई सर्वोपरि हो
इतने सर्वोपरि कि तुम तक संवेदनाएं पहुंचती ही नहीं
कि तुम आकाश नहीं हो जहां विज्ञान पहुंचे
न ही भाव हो कि पहुंचे किसी कवि की कल्पना
या किसी की आस्था
न ही कोई आवाज पहुंचे
न ही कोई आभास पहुंचे तुम तक
इतना दूर हो
इतने मायावी
कि तुम्हारा न होना जीवन में
ज्यादा फर्क पैदा नहीं करेगा...
यही समझ कर अब
तुमसे प्यार नहीं रहा
और इसलिए तुमसे लाज शरम भी नहीं बची
डर तो तुमसे कभी लगा ही नहीं
पर अब तुमसे रिश्ता टूट सा रहा है
अब तुम मेरे दायरे में नहीं रहे
और कौन जानें तुम्हारे दायरे के नियमकानून क्या हैं
और इन तमाम शक शुबहाओं के साथ
ईश्वर
तुम से अब प्यार नहीं रहा
और इसीलिए ईश्वर अब मैं सिर्फ मैं हो गई हूं
शायद एक व्यक्ति का मैं हो जाना सचमुच जरूरी है...
खड़े हो सकने के लिए कुछ आस्थाओं का टूट जाना जरूरी है।
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7 comments:
एक मायने में आपने मेरे दिल की बात कह दी ....ये रचना मेरे दिल के करीब हो गयी ....बेहतरीन
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
सच्चा बयान...ईश्वर का होना न होना..क्या फर्क पड़ता है...दिल को छू लेने वाली पंक्तियां...
खड़े होने के लिए नकली और पोपली चीजों के प्रति पैदा हुई आस्थाओं का टूटना सचमुच जरूरी है। कस्बों में देखें तो जब भी ईश्वर को 'शिद्दत' से याद करते हैं लोग शहर दंगाग्रस्त हो जाता है फिर कोई ईश्वर को याद नहीं करता।
वैसे, यह बहस लंबी खिंच सकती है, पर यह कविता आपने अच्छी लिखी है।
हमें भी एक सांचे में जीवन गुजारने की आदत नहीं,,,हम स पोपली और नकली चीज मानते हैं।
ur all the poems r the poetic critique of life......dr.amarjeet kaunke.
amarjeetkaunke@gmail.com
:) achhi hai.... kavita... ieshver k niyam kanoon kya hain kaun jane... main ho jao sab....
Tum Se Ab. Pyar Nahi Raha.
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