Saturday, January 31, 2009

साक्षी



कविता मां के ब्लॉग से ली है। पंक्तियां कैसी सच्चाई बोल जाती हैं! मां का ब्लॉग यादों और अनुभवों का ऐसा पुलिंदा है जिसे कागज दर कागज अनुराग अन्वेषी ब्लॉग पर चढ़ा रहे हैं। ...एक अजन्मे सुख के लिए मरना नादानी है...


जिस अग्नि को साक्षी मान कर
शपथ लेते हैं लोग,
उस पर ठंडी राख की परतें
जम जाती हैं।
मन की गलियों में
भटकती हैं तृष्णाएं।
मगर इस अंधी दौड़ में
कोई पुरस्कार नहीं।

उम्र की ढलती चट्टान पर
सुनहरे केशों की माला
टूटती है।
आंखों का सन्नाटा
पर्वोल्लास का सुख
नहीं पहुंचाता।
मगर एक अजन्मे सुख के लिए
मरना नादानी है,
जिंदगी भंवर में उतरती
नाव की कहानी है।

7 comments:

निर्मला कपिला said...

bahut sunder prastuti hai bdhai

ABHIVYAKTI said...

Bahut BAdhiya Poja Ji

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

जिंदगी भंवर में उतरती
नाव की कहानी है।
सचमुच क्या जिन्दगी ऐसी ही कहानी है या फिर भवंर से आगे की कहानी .

वैसे क्या हल हैं आपके. क्या सब हो रहा है नया ताज़ा

Pooja Prasad said...

हाल बढ़िया हैं गिरीन्द्र। आप भी बढ़िया होंगें, होप सो।

अर्चना said...

prayah to jindagi bhawanr men utarati naw ki hi kahani hoti hai.sudar panktiyon ke liye badhai.

अर्चना said...

prayah to jindagi bhanwar men utarati naw ki hi kahani hoti hai. sudar pantiyon ke liye badhai.

Unknown said...

achhi panktiyan...

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