Sunday, April 26, 2020

औरतों के यूटरस में कहां से आ जाते हैं ये फाइब्रॉयड्स...

जिस यूटरस (Uterus)में बच्चे नहीं होते, उसमें कभी-कभी फाइब्रॉयड्स (fibroids) आ जाते हैं...', स्त्री रोग विशेषज्ञ (Gynecologist) ने जब मुझे Uterine fibroid को लेकर यह बात कही तो मेरे जेहन में उन महिलाओं के नाम और चेहरे घूम गए जिन्होंने बच्चे भी पैदा किए लेकिन फिर भी वे फाइब्रॉयड्स की 'शिकार' हो गईं, और सालोंसाल इससे जूझती रहीं. कुछ आज भी जूझ रही हैं. तो फिर ये फाइब्रॉयड्स, जिसे एक प्रकार की रसौली भी कहा जा सकता है, होते क्यों है? एक हंसती-खेलती स्त्री की जिन्दगी में तांडव मचाकर रख देने वाले इन फायब्रॉयड्स की पैदाइश के कारण क्या हैं? कैसे ये पनपते हैं और कैसे ये खत्म होते हैं? इनका इलाज क्या है? ये खत्म होते भी हैं या ताउम्र परेशान करते हैं? क्या ये कैंसर में भी तब्दील हो सकते हैं? तमाम रोगों की तरह फाइब्रॉयड्स के पीछे भी लाइफस्टाइल और स्ट्रेस की उठापटक है लेकिन क्या सिर्फ इतना ही है?

यदि आप पुरुष हैं और ये लेख पढ़ रहे हैं तो आपको बता दें कि इस रोग से जूझती हूई महिलाएं आपके इर्द- गिर्द भी हो सकती हैं. इसलिए, इस दुर्दांत तकलीफदेह समस्या के बारे में पढ़ें, समझें और मददगार बनें. दरअसल फाइब्रॉयड्स ऐसे ट्यूमर (गांठें) हैं जो कभी बेहद तकलीफदेह मगर नॉन-कैंसरस होती हैं देऔर कभी-कभी केवल 'शरीर में पड़ी रहती' हैं. ये ऐसे ट्यूमर होते हैं जो यूटरस की मांसपेशियों के टिश्यूज़ से पैदा हो जाते हैं. वेबएमडी के मुताबिक, इनके साइज, शेप और इनकी लोकेशन हमेशा एक सी होती हो यह जरूरी नहीं. ये यूटरस के भीतर भी हो सकते हैं और इसके बाहर भी चिपके हुए हो सकते हैं. कई तो काफी छोटे होते हैं लेकिन 
भारी और बड़े.

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आपको फाइब्रॉयड्स (fibroids) हैं, यह कैसे पता चलेगा...?

आपको फाइब्रॉयड्स (fibroids) हैं, यह अल्ट्रासाउंड के जरिए पता चलता है. हां, अपने शरीर और पीरियड्स से जुड़े कुछ बदलावों पर गौर करें और डॉक्टर से मिलें. फाइब्रॉयड्स का शक होने पर वह भी पुख्ता तौर पर प्रॉपर डायग्नोज के बाद ही बताएगा कि आप इस समस्या से पीड़ित हैं. एक महत्वपूर्ण बात यह है कि शुरू में पता ही नहीं चलता है कि ऐसा कुछ है. पीरियड का अनियमित हो जाना, पीरियड्स का 6 दिन से ज्यादा चलना, पेल्विक पेन (Pelvic Pain), लोअर बैक पैन (Lower back pain), बार बार यूरिन आना, अक्सर कब्ज रहना, शारीरिक संबंधों (Sexual relations) के दौरान दर्द होना. कई बार इतनी ज्यादा ब्लीडिंग होने के चलते महिला को एनीमिया भी हो सकता है. इस प्रकार की दिक्कतों के बढ़ने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलें. यदि फाइब्रायड हों तो अपने लाइफ स्टाइल में बेहतर बदलाव लाएं. लाइफस्टाइल में जरूरी बदलावों के बारे में हमने इसी लेख में नीचे लिखा है.

आखिर ये फायब्रॉयड्स क्यों होते हैं...?

मेडलाइन प्लस के मुताबिक, डॉक्टर पुख्ता तौर पर नहीं बता पाते कि फाइब्रॉयड्स का असल कारण क्या है. लेकिन रिसर्च और अध्ययनों से पता चला है कि इसके पीछे कई कारण होते हैं. जैसे कि जेनेटिक बदलाव. हारमोन्स में बदलाव. Estrogen और progesterone ऐसे दो हॉरमोन हैं जिनके चलते कई बार फायब्रॉयड्स के बढ़ने की घटनाएं सामने आई हैं. फाइब्रॉयड्स में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टोरेन पाया जाता है और ये दोनों सामान्य यूटरिन मसल में भी पाए जाते हैं. आमतौर पर फाइब्रॉयड्स मीनोपॉज के बाद अपने आप सिकुड़ जाते हैं क्योंकि तब हॉरमोन्स का सीक्रेशन कम हो जाता है.

कैसी लाइफस्टाइल बेहतर, क्या खाएं-क्या न खाएं

 फल और सब्जियों का सेवन अधिक करें. माना जाता है कि सेब, ब्रोकली व टमाटर जैसे ताजे फल और सब्जियां खाने से फायब्रॉएड के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

• रक्तचाप यानी ब्लड प्रेशर पर नजर रखें. ब्लड प्रेशर बढ़ना फायब्रॉएड के लिए हानिकारक बताया जाता है.

• सबसे महत्वपूर्ण बात जो आपको ध्यान रखनी चाहिए वह है स्ट्रेस लेवल कम करना. मेडिटेशन या योगा के जरिए खुद को शांत रखने का प्रयत्न करें. चिंताओं को खुद पर हावी न होने दें.

• स्मोकिंग और एल्कोहल से दूरी बनाकर रखें. शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर बढ़ना है जोकि फायब्रॉएड के लिए ठीक स्थिति नहीं है.

• चाय कॉफी यानी कैफीन की मात्रा कम करना बेहतर.

• व्यायाम पीसीओडी और इस परिस्थति में जरूरी बताए जाते हैं. वजन संतुलित होगा तो ठीक होने की संभावना रहेगी. इसके अलावा व्यायाम से शरीर डीटॉक्सीकेट भी होता है.

• डॉक्टर्स इस स्थिति में प्रोसेस्ड फूड के सेवन से परहेज करने के लिए कहते हैं. हार्मोंस के स्तर को डिस्बैलेंस करने में जंक फूड, प्रोसेस्ड फू़ड का खास योगदान होता है.

फाइब्रॉयड्स (fibroids) से निजात के लिए क्या हैं इलाज...

फाइब्रॉयड्स (fibroids) के चलते समस्याएं गंभीर रूप लेने लगें तो डॉक्टर दवाएं देते हैं और कभी-कभी सर्जरी के लिए भी सलाह देते हैं. मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेस की तृप्ति मेहर ने एक संबंधित स्टडी के बाद कहा कि कई बार डॉक्टर्स गर्भाशय निकालने जैसे सुझाव तब भी दे डालते हैं जब इसकी जरूरत नहीं होती. Indusdictum के मुताबिक, वह कहती हैं कि hysterectomy यानी गर्भाशय का रिमूवल जैसे उपाय अत्याधिक ब्लीडिंग और फाइब्रॉयड्स के केसेस में भी सुझा दिए जाते हैं जबकि इन समस्याओं में गर्भाशय को शरीर से रिमूव कर देने की जरूरत नहीं भी होती. गर्भाशय निकाल देने के बाद न तो आपको पीरियड्स होंगे और न ही आप कभी मां बन पाएंगी.

यूटरिन आर्टरी ऐम्बॉलिजेशन (Uterine Artery Embolization- UAE): यदि फाइब्रॉयड्स का साइज बड़ा है, तो यह तरीका अपनाते हैं जिसमें एक छोटी सी 'ट्यूब' को पैरों की रक्त वाहिकाओं के जरिए शरीर में पहुंचाया जाता है. दरअसल इस प्रक्रिया के तहत फाइब्रॉयड्स को सिकोड़ने की कोशिश की जाती है. US National Library of Medicine National Institutes of Health में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, कई मामलों में देखा गया है कि इस तरीके को अपनाने वाली महिलाएं गर्भधारण कर पाई थीं.

एंडोमेट्रियल एब्लेशन (Endometrial ablation): यदि फाइब्रॉयड्स का आकार बहुत अधिक बड़ा नहीं है और ब्लीडिंग अत्याधिक होती है तो यह तरीका अपनाया जाता है. इसमें गर्भाशय की परतों को हटा दिया जाता है. बलून थैरेपी, हाई फ्रीक्वेंसी रेडियो वेव्स और लेजर एनर्जी जैसे तरीकों में से किसी एक के जरिए यह किया जाता है.

अल्ट्रासाउंड सर्जरी (MRI Guided Focused Ultrasound Surgery): US National Library of Medicine National Institutes of Health के मुताबिक, एमआरआई के जरिए स्कैन किया जाता है और देखा जाता है कि आखिर फाइब्रॉयड किस जगह पर हैं. एक प्रकार की मेडिकल-सुई के जरिए फाइबर ऑप्टिकल केबल डाली जाती है जो फाइब्रॉयड तक पहुंचकर इसे सिकोड़ देती है.

(नेटवर्क 18 की हिन्दी वेबसाइट Hindi.News18.com पर पब्लिश्ड मेरा आर्टिकल)

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