•एक होती है सचाई. एक होता है डर. सचाई हमेशा खुशनुमा नहीं होती. इसलिए डर भी हमेशा निराधार नहीं होते. हम सब चाहते हैं कि हमारे डर हमेशा झूठ साबित हों. इससे बड़ा सुख कुछ नहीं! हालांकि ऐसा हमेशा होता नहीं है. और ये जो सच है, वह न तो कड़वा होता है, न मीठा. होता है तो टोटली नंगा... सच के नंगेपन के साथ हमारा रिश्ता कैसा है, यह हमेशा बदलता रहता है. कभी सुख का. कभी दुख का...
•मगर डर के साथ हमारा रिश्ता बेहद दर्दनाक होता है. चाहे वह अंधेरे से डर हो या फिर उजाले के बुझ जाने का डर हो... डर अपने मूर्त और अमूर्त रूप में नाकों चने चबवा ही देता है. और, यदि भाग्यवश, डर सच निकल आएं तो... उफ... मैं हमेशा अपने कुछ क़रीबीयों को लेकर एक तीक्ष्ण डर को जीती हूं. बहुत कम ऐसा हुआ है कि किसी दिन मैंने इसे महसूस न किया हो. यह जब तीव्र होता है, तब कितना मारक होता है. और यह जब क्षीण होता है तब भी तो कितना... कितना.. कितना.. दुखाता रहता है...
•कुछ साल पहले मैंने हिम्मत करके गूगल किया और यह जानने की कोशिश की यह साला क्या मेरे ही साथ है या यह कोई थॉट-पैटर्न है, जिसे बदला जा सकता है टाइप्स.. यानी, क्या दुनिया में इस प्रकार के भय को जीते हुए मेरे जैसे लोग भी हैं.. यदि हैं, तो वह अपने जीवन को कैसे जीते हैं... कैसे इस डर को अपने फैसलों और दिनचर्या पर हावी नहीं होने देते.. क्या हैं तरीके... तरीके जो प्रैक्टिकली लागू किए जा सकें.. सत्संग नहीं.. तरीके.. हार्ड कोर टिप्स चाहिए थे मुझे.. जैसे कि डिस्प्रिन जिसे पानी में घोल कर पी लो तो सर दर्द गायब, पानी में घोलकर गरारा कर लो तो गले की खराश गायब.. मतलब रामबाण, इस डर का.
•रामबाण डर का ही चाहिए था, क्योंकि जिस बात का डर है, वह तो मनुष्य जन्म की सचाई है ही. इसलिए, उसका निदान नहीं. डर का निदान चाहिए था. मिला नहीं मुझे आज तक. कुछ समय जब यह डर कुछ साइलेंट रहता, तब लगता यह डर बीत चुका है, लेकिन फिर यह अचानक सांय सांय करके अपना सिर उठा लेता.. रात की नींद और दिन का चैन उड़ा देता.. सर में माइग्रेन दे देता.. यहां तक कि अपराध बोध से भी भर देता.. आजकल कोविड 19 के इस दौर में यह फिर सांय सांय करता है.. जबकि जन्म और मौत से इतर साला कुछ सचाई है ही नहीं..
(29 April 2020 की दोपहर एक शानदार एक्टर और शानदार शख्सियत इरफान की मौत हो गई. इरफान कैंसर का इलाज करवा कर लौट तो आए थे लेकिन कैंसर का तो ये है न, कि जिस घर में घुसता है, वहां से बाहर निकलता ही नहीं कभी पूरी तरह से... पिछले दिनो इरफान हॉस्पिटलाइज्ड हुए और कल साथ ही छोड़ गए.. न्यूज बिजनस में रहते हुए यह खबर चंद पलों में मुझ तक पहुंची और रुलाई में बदल गई. कोरोना वायरस के चलते वर्क फ्रॉम कर रही हूं, इसलिए रुलाई कुछ देर बाद मेरे भीतर के इस डर को हवा दे गई जो मैंने यहां लिखा है... और आज यानी 30 अप्रैल को ऋषि कपूर की मृत्यु हो गई.. )
इरफान |
•मगर डर के साथ हमारा रिश्ता बेहद दर्दनाक होता है. चाहे वह अंधेरे से डर हो या फिर उजाले के बुझ जाने का डर हो... डर अपने मूर्त और अमूर्त रूप में नाकों चने चबवा ही देता है. और, यदि भाग्यवश, डर सच निकल आएं तो... उफ... मैं हमेशा अपने कुछ क़रीबीयों को लेकर एक तीक्ष्ण डर को जीती हूं. बहुत कम ऐसा हुआ है कि किसी दिन मैंने इसे महसूस न किया हो. यह जब तीव्र होता है, तब कितना मारक होता है. और यह जब क्षीण होता है तब भी तो कितना... कितना.. कितना.. दुखाता रहता है...
•कुछ साल पहले मैंने हिम्मत करके गूगल किया और यह जानने की कोशिश की यह साला क्या मेरे ही साथ है या यह कोई थॉट-पैटर्न है, जिसे बदला जा सकता है टाइप्स.. यानी, क्या दुनिया में इस प्रकार के भय को जीते हुए मेरे जैसे लोग भी हैं.. यदि हैं, तो वह अपने जीवन को कैसे जीते हैं... कैसे इस डर को अपने फैसलों और दिनचर्या पर हावी नहीं होने देते.. क्या हैं तरीके... तरीके जो प्रैक्टिकली लागू किए जा सकें.. सत्संग नहीं.. तरीके.. हार्ड कोर टिप्स चाहिए थे मुझे.. जैसे कि डिस्प्रिन जिसे पानी में घोल कर पी लो तो सर दर्द गायब, पानी में घोलकर गरारा कर लो तो गले की खराश गायब.. मतलब रामबाण, इस डर का.
•रामबाण डर का ही चाहिए था, क्योंकि जिस बात का डर है, वह तो मनुष्य जन्म की सचाई है ही. इसलिए, उसका निदान नहीं. डर का निदान चाहिए था. मिला नहीं मुझे आज तक. कुछ समय जब यह डर कुछ साइलेंट रहता, तब लगता यह डर बीत चुका है, लेकिन फिर यह अचानक सांय सांय करके अपना सिर उठा लेता.. रात की नींद और दिन का चैन उड़ा देता.. सर में माइग्रेन दे देता.. यहां तक कि अपराध बोध से भी भर देता.. आजकल कोविड 19 के इस दौर में यह फिर सांय सांय करता है.. जबकि जन्म और मौत से इतर साला कुछ सचाई है ही नहीं..
(29 April 2020 की दोपहर एक शानदार एक्टर और शानदार शख्सियत इरफान की मौत हो गई. इरफान कैंसर का इलाज करवा कर लौट तो आए थे लेकिन कैंसर का तो ये है न, कि जिस घर में घुसता है, वहां से बाहर निकलता ही नहीं कभी पूरी तरह से... पिछले दिनो इरफान हॉस्पिटलाइज्ड हुए और कल साथ ही छोड़ गए.. न्यूज बिजनस में रहते हुए यह खबर चंद पलों में मुझ तक पहुंची और रुलाई में बदल गई. कोरोना वायरस के चलते वर्क फ्रॉम कर रही हूं, इसलिए रुलाई कुछ देर बाद मेरे भीतर के इस डर को हवा दे गई जो मैंने यहां लिखा है... और आज यानी 30 अप्रैल को ऋषि कपूर की मृत्यु हो गई.. )