Google saabhaar |
कुछ चेहरे मौसम नहीं होते
कभी नहीं बदलते
रहते हैं एकसार से
तीन सौ पैसठों दिन
साल दर साल
दशक दर दशक
बदल जाती है
इन चेहरों की नियति
फिर भी इनके चिन्ह नहीं बदलते
पड़ते हैं वैसे ही
रास्तों पर आपके
उसी आकार
उसी प्रकार से
जैसे पड़ते थे कभी
जब मिले थे पहली बार
इन चेहरों पर
वक्त की मार पड़ती है
बहुत बहुत कई बार,
कभी आंखों का पानी बहता है
भीतर की ओर,
कभी खुशियां मिलती हैं अपार
कि छाती दुखने लगती है,
पर नहीं बदलती इन चेहरों की सरगमी थाप...
कुछ चेहरे सदा ऐसे ही रहें,
कुछ चेहरे सदा ऐसे ही मनें,
कुछ चेहरे समाज में सदा रहें
ऐसे से ही,
जो मेरे जैसे न हो
जो तेरे जैसे न हो
जो हों तो बस हों
ठहराव, आस, प्यार और विश्वास लिए
सदा सतत निरंतर
शुक्र है शुक्र है शुक्र है।
6 comments:
अच्छा लिखती हैं आप. शब्दों को पंक्तियों का रूप देकर बहुत कुछ कह गयीं आप.
"kuchh chehare aise hi rahen....."
achchhe lagate hain wakt ki mar pr bhi nahin badalane wale chehare. achchhi lagi kawita.
शुक्र है, शुक्र है, शुक्र है...
भई वाह....शुक्र है कि अनुराग अन्वेषी के ब्लाग से होते हुए इधर से गुजरे।
जै...
very nice
good!
bAHUT SUNDAR!
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