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जो लोग सेवा को स्वार्थ नहीं मानना चाहते हैं, वे बताएं कि वे क्यों करते है सेवा?
सेवा संतुष्टि सी नहीं देती तो क्या देती है? कोई तो वजह होती होगी कि सुह्रदय लोग (टाटा अंबानी या अन्य अमीर कारोबारी नहीं) कभी कभार मंदिर के बाहर बैठे गरीबों को भोजन करवाते हैं। या, बुजुर्ग माता पिता का साथ तमाम दिक्कतों और विरोधाभासों को झेलते हुए देते हैं। या, नब्बे की उम्र पार गई विधवा बुआ को परिवार वालों के लाख चिक चिक करने के बाद भी उनकी अंतिम सांस चुकने तक साथ रखते हैं। या, कि बिना किसी बताए अनाथ बच्चों के आश्रम में अपना जन्मदिन बिताते हैं। अनजान लोगों के लिए कुछ करना। कभी कभी अपने दर्द और तकलीफों को भूल कर दूसरे के दुख दर्द को समझना और दूर करने का अपने स्तर पर प्रयास करना। और भी कई उदाहरण होंगे, फिलहाल तुरंत ध्यान में नहीं आ रहे।
क्या यह गलत नहीं है कि सेवा को निस्वार्थ सेवा की टर्म से पुकारा जाए...?
सेवा से मेरा मतलब एनजीओ में नौकरी करने से नहीं है। सेवा, जहां से आपको मोनिटरी या कोई और विजिबल फायदा न हो रहा हो...।
4 comments:
सही कहा आपने सेवा पर्मधर्म है शुभकामनायें
आपने ठीक लिखा है. हम निस्वार्थ सेवा की बात अपने अहं को सहलाने के लिए करते हैं. शुभकामनायें
जूली
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yeah. 10x for text
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