आइए उम्मीद जगाएं
ईश्वर के नाम पर जलाएं कुछ दिए,
और इन दियों से असंख्य देहरी टिमटिमाने की आस बनाएं..
आइए उम्मीद जगाएं।
1 मिनट के करतब पर जो 10 हजार ले जाए, उसे थपथपाएं (!)
हजारों नट और सपेरे कहां गुमनाम हुए, क्यों न सवाल उठाएं
बस जो छा जाए, क्यों उसे ही सलाम बजाएं।
रिअल्टी शो की दुनिया में
न्याय नाम के हत्यारे को
क्यों न फांसी पर चढ़ाएं।
आइए कुछ मौतों की दुआएं मनाएं।
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2 comments:
गुम हुए हजारों नट और सपेरे की तरह ही हो गए हैं आस्था और भरोसा। और अफसोस है कि मिनट भर का करतब दिखाने वाले ईश्वर (वैसे अबतक उसका कोई करतब देखा नहीं हूं, सिर्फ सुनता आया हूं दूसरों के मुंह से) के नाम पर ही दीये जलाए जाते हैं। आइए, आस्था और भरोसे के साथ हम इनसान बने रहने की कसम खाते हुए दिये जलाएं। :-)
आप सोचने पर मजबूर कर रहे हैं प्रणव जी..सोचना होगा और तलाशना होगा जवाब कि क्या इंसान की मजबूती से ईश्वर में हमारा भरोसा कमजोर पड़ने लगता है..
अनुराग जी, सही कहा आपने दिए तो इंसान बने रहने के लिए जलाए जाने चाहिए..दुआएं इंसान बने रहने के लिए की जानी चाहिए.
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