एक ऐसे समय में जब विश्वभर में ईश्वर और धर्म पर स्वतंत्र रूप से बात करना कोई बहुत आसान नहीं रह गया है, मेसीआ (Messiah) का बनाना, बन पाना, और एक पॉपुलर ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स (Netflix) पर दिखाया जाना, जिगरे का काम है. हालांकि देश और काल से इतर, हम सब जानते हैं कि इतिहास सिनेमाई दिलेरी का दसियों बार गवाह रहा है. जानकारी के लिए बता दूं कि मेसीआ पर प्रतिबंध लगाने के लिए जॉर्डन में जोर-शोर से आवाजें उठ रही हैं. कोई हैरानी न होगी यदि जब तक यह लेख आप तक पहुंचे, वहां यह बैन हो चुकी हो। बात आखिर अमानत में खयानत जैसी जो है.
मेसीआ को हम यहां मसीहा ही बोलें तो बात करने में थोड़ी आसानी होगी. ऑस्ट्रेलियाई पटकथा लेखक और निर्देशक मिशेल पेट्रॉनी (Michael Petroni) ने इस थ्रिलर को बनाया है और निर्देशित किया है जेम्स मैट्यूग (James McTeigue) और केट वुक (Kate Wood) ने. मसीहा डेल्युजन से इल्यूजन और यथार्थ से परिकल्पनाओं तक हमें ऐसे उठा- उठाकर पटकती है कि इसे देखते हुए हम सवाल रचते हैं, जिनके जवाब देते हैं और जवाबों को खारिज कर फिर से सवाल कर लेते हैं. मगर यह नया सवाल पिछले सवाल से अलग होता है. मसीहा को गूगल किए बिना सीधा देखना शुरू कर देना, इसकी उठापटक को जीना है. किसी किताब का अंत यदि आप जान लें तो उसे पढ़ने का रोमांच समाप्त हो जाता है और रोमांच ही तो जीवन का नमक है! नहीं क्या?
कहानी का मोटा-मोटी प्लॉट यह है...
खैर, 10 लंबे-लंबे एपिसोड्स की एक सीरीज जिसका नाम मेसीह है नेटफिल्क्स की हालिया प्रस्तुति है. प्रत्येक एपिसोड 40 से 50 मिनट लंबा. सीरीज की शुरुआत में ही स्पष्ट शब्दों में कहा गया है कि यह पूरी तरह से काल्पनिक घटनाओं पर आधारित है. इसका धर्म, व्यक्ति विशेष, चरित्र से कोई लेना देना नहीं है. सीरीज को 1 जनवरी 2020 को रिलीज किया गया. सीरीज का पहला दृश्य सीरिया (Syria) की राजधानी दमासकस (Damascus) शहर ले चलता है जहां ईसा मसीह के लौट आने की हवा उस वक्त बह चलती है जब एक 'रहस्यमयी' शख्स एक टोरनेडो से लोगों को 'बचाता' है. इस हवा को सबसे पहले भांपने वाली CIA एजेंट ईवा गैलर (Michelle Monaghan) के साथ हम इस सीरीज की परत दर परत खोलते हैं. आज के तार्किक समाज के बीच 'ईसा मसीह की वापसी' तमाम शक शुबहा खड़े करती है और इस बीच होती हैं कुछ घटनाएं. जिन्हें, अंतरराष्ट्रीय समाज का एक बड़ा धड़ा, जो इस अल-मसीह का फॉलोअर बन रहा है, चमत्कार कह रहा है जबकि दूसरा कंफ्यूज्ड (जी हां, कंफ्यूज्ड) धड़ा खतरनाक मान रहा है. आम लोगों के बीच जब आप इस अल-मसीह पुकारे जाने वाले शख्स के मसीहा होने पर जरा 'भरोसा' सा करने लगते हैं, तब अगले ही पल मसीहा के शातिर कोन-मैन होने का शक आपको बर्रा देता है. और, आखिरी एपिसोड तक सस्पेंस और थ्रिलिंग अनुभवों के बीच क्रेश हुए क्लासिफाइड एरोप्लेन के बाहर मसीहा और बाकी दो लोगों के साथ आप भी इसकी अगली सीरीज के आने का इंतजार शुरू कर देते हैं.
किसी को हुई आपत्ति किसी ने ध्यान ही नहीं दिया...मेन कैरेक्टर अल-मसीह द्वारा अमेरिकी प्रेजिडेंट से सीक्रिट मीटिंग के दौरान जो मांग की जाती है, उसके बाद दर्शक को लगता है- ओह तो यह है पूरा मामला. लेकिन आखिरी एपिसोड तक आते आते दर्शक की यह सोच भी 'Shit Yaar' में बदल जाती है. अल- मसीह की खास बात यह है कि यह सभी धर्मों के मौजूदा रूप और एग्जेक्यूशन पर वाजिब लगने वाले कुछ सवाल खड़े करता है. यह न बाइबल का नाम लेता है न कुरान का और न ही किसी और धर्म का लेकिन इन धर्मों की धर्म पुस्तकों में लिखे गए कोट्स का जिक्र वह लगातार करता है. वैसे शुरुआती एपिसोड से शुरू ये धारदार कोट्स आपको भी शानदार लग सकते हैं. क्रिश्चिएनिटी या यूं कहें कि ईसा मसीह के माता- पिता पर CIA एजेंट द्वारा काफी अधिक तीखे शब्दों में सहज रूपेण टिप्पणी करना, बड़े वर्ग को खला नहीं... सुखद हैरानी हुई मुझे. हालांकि गूगल ने बताया कि एक धर्म विशेष के ऑडियंसेस द्वारा ट्रेलर को लेकर आपत्ति जताई गई थी. वैसे यहां यह भी बताते चलें कि सीरीज की शूटिंग का बड़ा हिस्सा जॉर्डन में ही फिल्माया गया है जहां इसे प्रतिबंधित करने की मांग चल रही है. सीरीज जिस तरह से बनाई गई है, यह काल्पनिकपन की ओर तकनीकी रूप से उलझाती नहीं. इसलिए लगता कुछ ऐसा है, जैसे हालिया दौर (2019) के घटनाक्रम की पड़ताल की जा रही है.
तो क्या सचमुच ईसा मसीह लौटेंगे? कभी यह अल-मसीह एक कुत्ते को मार देता है और कभी यह गोली खाए एक बच्चे को 'जीवित' कर देता है. वह अपने फॉलोअर्स की परवाह नहीं करता. और, उससे संबंधित किसी भी स्थापित होते दीख रहे विचार को बेदर्दी से तोड़ चलता है. सुना है, ईसा मसीह भी स्टीरियोटाइप तोड़ा करते थे. यह अल-मसीह कभी लोगों को इस्तेमाल करता हुआ लगता है किसी खास एजेंडे के तहत, कभी वह धर्म की पुर्नस्थापना के लिए दुनिया भर के बॉर्डर्स की समाप्ति चाहता हुआ एक मानवतावादी लगता है. मसीह में एक और कैरेक्टर है जिबरिल. जिबरिल ने ही इस शख्स को अल-मसीह का नाम दिया. ऐसा लगता है सीरीज का अगला भाग इस कैरेक्टर के इर्द गिर्द घूमेगा क्योंकि जहां अल-मसीह अब शक की बेड़ियों में बंध गया है, जिबरिल आखिरी एपिसोड आते आते 'सेकंड कमिंग' का असल हकदार सा लगने लगता है जिस पर कम स कम शक की जंजीरें फिलहाल नहीं दिखाई गई हैं.
और क्या मिलेगा...मसीहा को लिखने और निर्देशित करने वालों का विभिन्न धर्मों और धार्मिक पुस्तकों को लेकर तार्किक ज्ञान उच्चस्तरीय न रहा होगा तो इतना शानदार धारदार थ्रिलर लिखना असंभव था. सीरीज का हर कैरेक्टर अपनी जगह पर फिट है और कहीं कोई ओवर-डू नहीं दिखता. सीरीज में सीआईए जैसे टफ जॉब होल्डर्स की रिसती निजी जिन्दगियां, सोशल मीडिया की ताकत (या कि कहें, इंफ्लूएंस), अकेला होता जा रहा समाज, प्रमुख धर्मों के हार्ड कोर फॉलोअर्स के हिलते हुए विश्वास, राजनीतिक उठापटक और अमेरिकी राजनीतिक गलियारों पर भी रोशनी डालती चलती हुई यह सीरीज, नो डाउट, देखी जानी चाहिए, केवल तभी जब आप कुछ हटकर देखना चाहते हों. मगर इसी के साथ, यह एक सवाल भी छोड़ जाती है कि क्या एक सच्ची कहानी का नाट्य रूपांतरण है?
PS: इस बीच ये बता दूं कि कुछ दिन पहले ही मेसीहा की टीम ने इंस्टाग्राम पर बताया कि कोविड 19 के इस दौर के बाद भी मेसीहा का अगला पार्ट नहीं रिलीज होगा. जबकि, तैयारियां पूरी थीं.. खैर, हम इस टीम को शुभकामनाएं देते हैं..
(20 जनवरी को News18 Hindi (Network18 Media) में प्रकाशित मेरा लेख)