Saturday, August 7, 2010

जम्मू कश्मीर वालों को हैपी 15 अगस्त

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बरस जब बीतते हैं तो बीतते जाते हैं। ठीक उसी अंदाज में जैसे टीवी पर अपना फेवरिट प्रोग्राम देखते हुए मिनट बीतते हैं। झटपट...झटपट...
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कभी कभी बीते हुए वक्त की ओर देखना किसी पुराने किले में गुम होने जैसा होता है। जिसकी हर खिड़की किसी नए आसमान की ओर खुलती है। वैसे ऐसी तो मेरी कोई उम्र नहीं कि मैं बीते हुए वक्त की ओर देख कर यूं नॉस्टेलजिक होती फिरूं..पर साथियो, आपने भी कभी कभी महसूस किया होगा न कि खास मौसम, खास धूप, खास शाम या कोई खास सुबह बरसों पहले के किसी वक्त की याद दिला जाती हो। सबकुछ कैसा तरोताजा सा लगने लगता है न अचानक...

... अगस्त के पहले सप्ताह में जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में सुबह सुबह पहुंचना होता था। एनसीसी के सभी कैडेट्स को 8 बजे की रोल कॉल में होना ही होता था, नहीं हुए तो लंबे चौड़े स्टेडियम ग्राउंड के 4 भंयकर चक्कर पक्के। 15 अगस्त के सेलिब्रेशन की तैयारी के लिए 26 (तब 26 ही थे) राज्यों से चुन कर कैडेट्स आए हुए थे। मार्च के अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम और तमाम तरह की गतिविधियां जैसे योग और स्पोर्ट्स कंपटीशन के लिए सैंकड़ों कैडेट्स का जमावड़ा वहां सुबह साढ़े सात बजे तक हो जाता था। दूसरे राज्यों से आए कैडेट्स दिल्ली कैंट में ठहराए गए थे। 15 अगस्त से सप्ताह भर पहले हमें भी दिल्ली कैंट में ही ठहराना था। पर फिलहाल तो हम अपने अपने घरों से ही जेएनएस तक का अप ऐंड डाउन कर रहे थे। 15 अगस्त से पहले के 20 दिन यहां दिन भर रिहर्सल होती।
रोल कॉल के बाद रिगरस ट्रेनिंग शुरू होती। बारिश के दिनों के बाद निकली तीखी धूप में पानी पानी चिल्लाते हम धूप में चक्कर खा कर गिरते भी लेकिन रिफ्रेंशमेंट ब्रेक अपने तय वक्त पर ही मिलता। पहले रिफ्रेशमेंट ब्रेक के बाद अक्सर कुछ कुछ कैडेट्स इधर उधर हो लेते और अगला राउंड मिस कर देते। पकड़े जाते तो बुरी गत होती और बच निकलते तो इस बंकमारी के मजेदार किस्से बाद में साथियो को सुनाते।
तमाम राज्यों के स्कूल- कॉलेज के कैडेट्स का इसी बीच आपस में इंटरेक्शन भी होता गया। दिल्ली डायरेक्टोरेट के लड़के कैडेट्स जहां दिल्ली की लड़की कैडेट्स के इर्द गिर्द चक्कर काटने में ही अपना रिफ्रेशमेंट टाइम निकाल देते वहीं लड़कियों की दोस्ती ज्यादा से ज्यादा दूसरे राज्य के कैडेट्स से होती गई। हां हां सही सोचा आपने, इन बाहरी कैडेट्स में लड़के भी थे और लड़कियां भी। दिल्ली डायरेक्टोरेट के लड़के जहां लड़की पटाने टाइप चीजों में ही उलझे रहते थे, वहीं दिल्ली डायरेक्टोरेट की लड़कियों की दोस्ती आंध्र और कर्नाटक के उन कैडेट्स से भी हुई जो हिंदी या इंग्लिश नहीं जानते थे और
जरूरत पड़ने पर ठीक से मेडिकल ऐड भी नहीं मांग पाते थे। ऐसा नहीं था कि इनके ट्रेनर इनकी मदद नहीं करते थे, लेकिन अब हर समय तो टीचर लोग आस पास नहीं ही हो सकते थे।

जम्मू कश्मीर, गुजरात, महाराष्ट्र, हिमाचल, पंजाब, राजस्थान के युवा कैडेट्स में एक चीज जो दिखी, वो दिल्ली डायरेक्टोरेट के कैडेट्स में कतई नहीं दिखती थी। इन तमाम कैडेट्स के व्यवहार में आगे बढ़ने की जबरदस्त ललक तो थी ही, हद दर्जे का बहनापा भी था। ये लोग आगे बढ़ते समय अपने साथ वाले को कोहनी मारते हुए नहीं चलते थे और न ही खुद को शिखर पर पहुंचाने की होड़ इनमें थी। और यह चीज उनके मार्चिंग के दौरान के
व्यवहार में ही हो ऐसा नहीं था, यह उनके अंदर ही कहीं जज्ब थी। याद है कि गुजरात के उस लड़के को बड़ी बुरी पनिशमेंट मिली थी औऱ उसकी रैंकिंग भी पीछे कर दी गई थी क्योंकि वह मार्चिंग में मौजूद नहीं था। पूछने पर पता चला कि फलां राज्य के एक कैडेट को जब दौरा सा कुछ आया था तो यह भी भागा भागा साथ हो लिया था उसे सहायता देने। इसी चक्कर में नेक्स्ट रोल कॉल में नहीं पहुंच पाया था।
और, अगर कोई यह कहे कि इन राज्यों में ग्लोबलाइजेशन-कंपटीशन-बाजारवाद जैसे शब्द नहीं पहुंचे हैं तो यह गलत होगा। क्योंकि, जम्मू के ही कैडेट्स से हमें पता चला कि फ्रेंडशिप डे अगस्त के पहले रविवार को होता है। और वैलंटाइंस डे को क्यों बैन नहीं होना चाहिए। सच कहूं तो वैलंटाइंस डे और फ्रेंडशिप डे का फर्क भी तभी पता चला था। नहीं तो तब हमें तो सब एक ही लगता था। आतंकवाद को पार्ट ऑफ लाइफ मान चुके ये लड़के भारत सरकार से नाराज नहीं दिखे थे। असल मॉडर्न सोच वाले राज्य में जब हाल ही में मचे खून खराबे की खबरें पढ़ती देखती हूं तो दिमाग भन्ना जाता है।
जम्मू डायरेक्टोरेट के कैडेट्स से हम लोगों का उठना बैठना ज्यादा होता था। वो सबसे कम हाइट वाला वकार यूनिस डॉक्टर बनना चाहता था और उसके पास बाकायदा अगले चार सालों की ऑन पेपर प्लानिंग थी। वो सबसे लंबा और स्पोर्ट्स ग्रुप का हेड बॉय एथलीट बनना चाहता था और इसके लिए प्रोपर प्रैक्टिस भी कर रहा था। पिछले दो साल से 15 अगस्त के उपलक्ष्य में जेएनएस आ रहा था। कहता था और जानता था कि जब प्रफेशनल एथलीट बन जाएगा तो यहां अक्सर ही आया करेगा।

पता नहीं वकार डॉक्टर बना कि नहीं... पता नहीं हेडबॉय ऐथलीट के सपने का क्या हुआ...। देश के इस सबसे अशांत हिस्से में शांत आंखों में पनपते इन बेकसूर सपनों ने किसी आतंकवादी किसी ईश्वर और किसी सरकार का क्या बिगाड़ा होगा...डर लगता है कहीं इन सपनों की भ्रूण हत्याएं तो नहीं हो गई होंगी...। अबकी 15 अगस्त पर जम्मू कश्मीर में रहने वाले हर सजीव के लिए लाखों दुआएं।

2 comments:

विवेक said...

हमने खुशी को दिनों में बांट कर गलती तो नहीं कर दी? जो उस दिन को अपना ना मान पाए वो खुश नहीं हो पाता होगा. कश्मीर के लड़कों के लिए किसी और दिन को 15 अगस्त बना दें तो?

neelima garg said...

very nice...

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  हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...