यूं तो हम और आप कितना ही साहित्य पढ़ते हैं, पर कुछ लफ्ज अंकित हो जाते हैं जहनोदिल पर। ऐसे अनगिनत अंकित लफ्जों में से कुछ ये हैं जिन्हें Book of Mirdad से लिया है। हिंदी में इस किताब का अनुवाद किया है डॉक्टर प्रेम मोहिंद्रा और आर सी बहल ने।
...क्योंकि समय कुछ भी नहीं भूलता। छोटी से छोटी चेष्टा, श्वास- नि:श्वास, या मन की तरंग तक को नहीं। और वह सबकुछ जो समय की स्मृति में अंकित होता है स्थान में मौजूद पदार्थों पर गहरा खोद दिया जाता है।
-आत्मप्रेम के अतिरिक्त कोई प्रेम संभव नहीं है। अपने अंदर सबको समा लेने वाले अहं के अतिरिक्त अन्य कोई अहं वास्तविक नहीं है।
-यदि तुम अपने प्रति ईमानदार रहना चाहते हो तो उससे प्रेम करने से पहले जिसे तुम चाहते हो और जो तुम्हें चाहता है, उससे प्रेम करना होगा जिससे तुम घृणा करते हो और जो तुमसे घृणा करता है।
-प्रेम के बदले कोई पुरस्कार मत मांगो। प्रेम ही प्रेम का पर्याप्त पुरस्कार है। जैसे घृणा ही घृणा का पर्याप्त दंड है।
-एक विशाल नदी ज्यों ज्यों अपने आपको समुद्र में खाली करती जाती है, समुद्र उसे फिर से भरता जाता है। इसी तरह तुम्हें अपने आपको प्रेम में खाली करते जाना है ताकि प्रेम तुम्हें सदा भरता रतहे। तालाब, जो समुद से मिला उपहार उसी को सौंपने से इंकार कर देता है, एक गंदा पोखर बन कर रह जाता है।
-यह जान लो कि पदार्थों और मनुष्यों से तुम्हारे संबंध इस बात से तय होते हैं कि तुम उनसे क्या चाहते हो और वे तुमसे क्या चाहते हैं। और जो तुम उनसे चाहते हो, उसी से यह निर्धारित होता है कि वे तुमसे क्या चाहते हैं।
नईमी और बुक ऑफ मीरदाद के बारे में थोड़ा और-
मिखाइल नईमी ने बुक ऑफ मीरदाद 1946-47 में लिखी। अंग्रेजी में लिखी और फिर खुद ही अरबी में इसका अनुवाद किया। वेस्टर्न कंट्रीज में नईमी की दो दर्जन से अधिक पुस्तकों में इसे सबसे ज्यादा स्नेहपूर्ण स्थान प्राप्त है। खुद नईमी ने इसे अपनी सर्वोत्तम रचना माना।
जन्म हुआ 1889 में, लेबनान में। गरीब परिवार में जन्मे मिखाइल रुस में पढ़े, फिर अमेरिका जा कर पढ़ने का मौका मिला। वहां खलील जिब्रान से मुलाकात हुई और अरबी साहित्य को पुर्नजीवित करने के लिए दोनों ने मिल कर एक आंदोलन खड़ा किया। 1932 में देश वापस लौटे और 1988 में मिखाइल का देहान्त हो गया।
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15 comments:
ओशो ने कुछ पुस्तको की प्रशसा की थी । उनमे से एक बुक आफ मिरदाद भी थी । ओशो द्वारा प्रशंसीत कुछ पुस्तके मैने पढी, लेकिन वे मेरे शिर के उपर से निकल गई । लेकिन आपने जो उद्धरण दिए है, उसे पढने के बाद लगता है की मुझे यह पुस्तक पढनी चाहिए। शायद "प्रेम" के सम्बन्ध मे मेरे अंनसुल्झे प्रश्नो का उत्तर मुझे इस पुस्तक मे मिल जाए । वैसे मै सिर्फ उत्तर से संतुष्ट नही होने वाला, मुझे तो ऐसी पुस्तक जो मेरे अन्दर असली प्रेम के बेज अंकुरीत कर दे। कहां से मै "बुक आफ मिरदाद" (हिन्दी) मंगा सकता हु , कितने मुल्य की पुस्तक है, कृपया यह जानकारी देने की कृपा करे ....
@नेपाल हिन्दी सहित्य परिषद
हिंदी में अनूदित बुक ऑफ मीरदाद का नाम है - किताब ए मीरदाद। आप इसे इस पते से मंगा सकते हैं-
जीपीएस भल्ला, सेक्रेटरी,
साइंस ऑफ सोल रिसर्च सेंटर
5 गुरु रविदास मार्ग, पूसा रोड
नई दिल्ली -110005
किताब गिफ्ट की गई थी सो कीमत नहीं जानती। और, किताब पर कहीं कीमत अंकित है भी नहीं!
great book
धन्यवाद ! मैने आपके बताए संस्था को ईमेल भेजा है। जवाब की प्रतीक्षा मे हुं । किताब पढने की उत्सुकता बनी हुई है । देखुं मेरी अपेक्षाओ पर किताब खरी उतरती है या नही ।
......
धन्यवाद । साईस आफ सोल रिसर्च सेंटर को ईमेल भेजा है । जवाब की प्रतीक्षा मे हुं ....
प्रकाशक से ईमेल आदान प्रदान का कोई लाभ न हुआ। लेकिन एक भले मित्र के सौजन्य से किताब-ए-मिरदाद पढने और उससे लाभ लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
पेज १३० के बादर् इस पुस्तक में जो लिखा है, वह सिर्फ ज्ञान के सहारे नहीं लिखा जा सकता है । निश्चित रुपसे मिखाइल नईमी ने उच्चतम अवस्थाओं की अनुभुति की होगी| खाडी की परम्पराओं अनुरुप लेखकका प्रोफेटहुड के प्रति थोडा रुढ दृष्टिकोण दिखता है लेकिन पश्चिम की मान्यता अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में प्रभु के समकक्ष बनने की संभावना उन्होने स्वीकार किया है । वैराग्य को उन्होने उच्च महत्व दिया है तथा दिव्य ज्ञानके लिए पुर्व-शर्त के रुप में स्वीकार किया है, महापुरुषों के जीवन चरित इसका प्रमाण है। पुस्तक में स्थान-स्थान पर सुन्दर अध्यात्मिक निर्देश दिए गए हैं । सभी को नोट करना सम्भव न था, फिर भी कुछेक छुने वाले अंश नीचे दिए गए हैं। :-
स्त्री का आदर करो, मेरे साथियो, और उसे पवित्र मानो। मनुष्य जाती के जननी के रुप मे नही, पत्नी या प्रेमिका के रुप मे नही बल्कि द्वैतपुर्ण जीवन क लम्बे श्रम और दुःख मे कदम-कदम पर मनुष्य के प्रतिरुप और बराबर के भागीदार के रुप में ।
विश्वास करो वह दिन आ रहा है जब मनुष्य वस्तुओ के सुगन्ध पर जियेंगे जो उनकी
क्योकि तडपने वाले जानत है कि देह का जीवन और कुछ नही देह-रहित जीवन तक पहुँचनेवाला पुल मात्र है।
और तडपने वाले जानते है कि स्थुल और अक्षम ईन्द्रियां अत्यंत सुक्ष्म तथा पुर्ण ज्ञान के संसार के अन्दर झांकने के लिए झरोखें-मात्र हैं।
(नोट : भोजन पुर्व मन्त्र के रुप में ग्रहनीय) " मेरी अनुपम मां, जिस प्रकार तुने अपना ह्रदय मेरे सामने फैला रखा है ताकि जो कुछ मुझे चाहिये ले लूँ, उसी प्रकार मेरा ह्रदय तेरे सम्मुख प्रस्तुत है ताकि जो कुछ तुझे चाहिये ले ले । "
जब तुम्हारी मुख्य रुचि लागों के बटुओं में है, तब तुम्हे उनके ह्रदय में प्रवेश का मार्ग कैसे मिल सकता है - और यदि तुम्हे मनुष्य के ह्रदय में प्रवेश का मार्ग नहीं मिलता तो प्रभु के ह्रदय तक पहुँचने की आशा कैसे कर सकते हो - और यदि तुम प्रभु के ह्रदय तक नहीं पहुँचते तो क्या अर्थ है तुम्हारा जीवन का -
लोगों पर शासन करना चाहते हो तुम - तो पहले आप पर शासन करना सीखो ।
क्या तुम सिद्धान्तों के पढते हो ताकि धार्मिक मंचो से उनकी शिक्षा दे सको और तर्क तथा वचन-चातुरी द्वारा, और यदि आवश्यकता पडे तो तलवार की धार द्वारा, यनकी रक्षा कर सको-
पवित्र अंगूर-बेल का दिवस आत्म-विस्मृति का दिन था-प्रेम की मदिरा से उन्नत और ज्ञान की आभा से स्नात दिन, स्वतन्त्रता के पंखो के संगीत से आन्नद-विभोर दिन, बाधाओं को हटाकर एक को सबमें और सबको एक में विलीन कर देने का दिन । पर देखो, आज यह क्या बन गया है ।
अन्धो के हाथ में नाममात्र की भी सत्ता दे दो तो वे उन सब लागों की आँखे निकाल देंगे जो देख सकते हैं, उनकी भी जो उन्हें देख्ने की शक्ति प्रदान करने के लिये स्वयं कठोर परिश्रम करते हैं ।
संसार में से बदी के घास-पात को उखाड फेंकने का यत्न न करो, क्योंकि घास-पात की ची अच्छी खाद बनती है ।
काफी कुछ अध्यात्मिक सन्देश सा है ..आदर्शवादी विचारधारा सदा से मेरे सर के उपर से निकलती आई है.
पूजा प्रसाद जी नमस्कार ।
हम ने आपका पुस्तक समीक्षा भी पढेथे सायद दैनिक भाष्कर पे था उहां पे लिखा था कि पुस्तक का मूल्य २० रुपये करके । हम उत्तरकाशी मे रहते है कही बार प्रकाशन पे पत्राचार किया लेकिन न तो कोही रिप्लाई हि मिला न पुस्तक हम ने यहां के नजदीक हरिद्वार के कुच बुक सेलर से भी पुछा लेकिन वह भी बता नहीं पा रहे है । हमसे English मे PDF तो है लेकिन English ज्यादा समझ मे नहीं आती कृपया कृपा करके कोही बुक सेलर का पता दिजिएगा जो VPP करके भेज सकें ।
मोहन स्वरूप
जाह्नवी धाम
गंगोरी, गंगोत्री रोड
उत्तरकाशी- २४९१९३
very nice pooja ji, thanx
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Does your website have a contact page? I'm having a tough time locating it but, I'd like to shoot
you an email. I've got some creative ideas for your blog you might be interested in hearing. Either way, great blog and I look forward to seeing it improve over time.
my site :: official website
BOOK OF MIRDAD - ABOVE ALL BOOKS
Kya aap mujhe ye book ki copy mail kar sakate hai????
Book of mirdad राधा स्वामी सत्संग व्यास वालों से हिंदी में मिल जाती है। अपने आसपास उन्हें खोज लें मिल ही जायेंगे । हिंदी में pdf भी मौजूद है डाउनलोड कर सकते हैं।
पर हां नियमित ध्यान करते हों तो ये किताब सीधे हृदय तक उतर जाती है उसके बिना कुछ समझ नहीं आएगा
धन्यवाद
if possible plz send me soft copy.
Where can i buy this book in hindi
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