Saturday, August 15, 2009
पूछताछ
"नहीं..मैं शाकाहारी हूं
नहीं ऐसे ही हूं..
कोई खास वजह नहीं..
वैसे अंडे से मुझे खास परहेज नहीं
नहीं मैं ड्रग्स नहीं लेता
पर मैं शराब का शौकीन हूं
शराब अमरीकी हो तो ज्यादा भाती है..
नहीं अफगान मैं कभी गया नहीं..
दिवाली.. हां एक त्योहार है
पर मेरा खास प्रिय नहीं..
क्योंकि शोर शराबा मुझे पसंद नहीं
क्रिसमस नहीं मनाया कभी
मौका नहीं मिला कभी
नहीं क्रिसमस से मुझे कोई परहेज नहीं
क्यों हो आखिर?!....
दरअसल, वजह सिर्फ यह है
कि ईसाई मेरे इर्द गिर्द नहीं, बस इसलिए...
हां ईद तो मैं मनाता हूं।
मेरा प्रिय त्योहार है।
नहीं दिवाली खास प्रिय नहीं..
क्योंकि शोर शराबा नहीं झेल पाता मैं...
बस और कोई वजह नहीं
क्यों हो आखिर?!......
ईद अपेक्षाकृत शांत त्योहार है
नहीं ईद तो मैं मनाता हूं...
मेरा प्रिय त्योहार है..
बचपन से ही मनाता हूं
हां पासपोर्ट है मेरे पास
हां वोटरआईडी भी
स्कूलिंग मेरी अलीगढ़ से हुई
नहीं मदरसे से नहीं..
जामिया मिलिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन की
नहीं उर्दू तो घर पर ही सीखी थी
अब्बा ने सिखाई थी
हां अब भी पढ़ लेता हूं..
पर...
नहीं जामिया नगर नहीं रहा कभी
पुराने दोस्तों से.. हां संपर्क में हूं
नहीं बस संपर्क में हूं..
नहीं बस ऐसे ही हूं..
नहीं वो साथ काम नहीं करते..
नहीं हम आगे साथ पढ़े नहीं..
नहीं वो घर पर नहीं आते जाते..
कुछ आते हैं
नहीं ऐसे ही आते हैं..
हम फेसबुक पर हैं
हां इसी नाम से हूं
नहीं छद्म नाम से नहीं हूं..
वो भी नहीं हैं
हां मेरे ही समुदाय से हैं
एक सिख भी है
सभी समुदाय से हैं
नहीं अपनी पहचान के साथ ही हैं...
वो करीबी दोस्त नहीं...
नहीं बाकियों के ज्यादा करीब हूं..
ऐसे ही
सर, एक बात बताऊं..
मेरी बेटी का नाम प्रताप दुबे की माता जी ने रखा है..
नहीं कभी यूनियन में नहीं रहा
हां यह तब मेरा रोलनंबर था...
वो तो मैं लाया नहीं..
सर..
कल जमा कर दूं?
ठीक है आप साथ चलिए..
ठीक है मैं कल आऊंगा..
नहीं.. भागूंगा कहां?
भागूंगा क्यों!?
भागूंगा नहीं, जरूर आऊंगा
सर, ये लीजिए..
यह मेडिकल सार्टिफिकेट है
मेरी दो आंखें हैं
मेरे दो कान हैं
और मैं इंसान हूं
मेरा नाम खान है
मैं मुसलमान हूं.."
(स्वतंत्रता दिवस पर मिली ये खबर बहुत बुरी है)
फोटो साभार- गूगल
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6 comments:
एक प्रश्न उठाती है कविता और साथ ही सोचने पर मजबूर करती है...क्या यही अंतिम स्थिति है या इसके आगे भी कुछ और होना बाकि है..
-लिंक में दी खबर पढ़ी...सच में दुःख की बात है!
लेकिन जब भारत के अंदर उनकी विमानसेवा डॉ.कलाम साहब के साथ ऐसा व्यवहार कर सकती है तो वह तो उनका अपना देश है जिसे चाहें रोकें!
बेहद उम्दा रचना..
आपने जिसे कविता बना कर लिखा है वास्तव मे वह छोटी किंतु अत्यन्त महत्वपूर्ण श्रेष्ट विचारों का सागर है.हर पंक्ति बेहतर और भावपूर्ण है..
अच्छा लगा..धन्यवाद.
यह सिर्फ कविता नहीं पूजा, एक दस्तावेज है, एक अहम दस्तावेज इस वक्त का...वर्तमान इतिहास का...बेहतरीन...
@ विनोद धन्यवाद.
@अल्पना, मेरा नाम पूजा होने से मुझे कट्टर भगवा हिंदू मान कर मुझे कोई हिंदू संगठन माथे पर क्यों बिठाए..और ऐसे ही क्यों खान होने पर मुझे दुत्कारे..।
@विवेक, अपने बच्चों के नामों को गड्डमड्ड कर रखने की एक पोस्ट डाली थी आपने अपने ब्लॉग पर। कि, हिंदू रखे अपनी बेटी का नाम सकीना और मुस्लिम रखे सुनैना..कुछ इस तरह के प्रयोग की जरुरत का उत्साह था आपकी पोस्ट में। यह पोस्ट
लिखते में याद आया था कि अगर वाकई ऐसा हो जाए तो 'खानों' के साथ का खान होने के कारण होने वाला रवैया 'नहीं हो पाएगा'।
This is not a big deal. It also happens to others, not only to Muslims. There are many categories, which undergo through surveillance, one of those are the frequent flayers irrespective of religion. In face of the terrorism, precaution is warranted and should be taken in that spirit.
i agree that there are prejudices prevailing against certain communities.. but i seriously doubt that this news has not been publicized for promoting his next movie "My name is khan"... this is a common thing which happens to most of us belonging to this part of world and there is really no big deal if a security guard at some airport in USA doesn't know who the hell is SRK.
the point which should be discussed is rather that SRK was released after a matter of hours. What about common people???
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