Monday, August 17, 2009
आइए झांके गिरेबान में
फिल्म 'कमीने' पर कुछ भी नपे तुले सही सही शब्दों में कह पाना मुश्किल है। नो डाउट, फिल्म नॉट ईज़ी टू अंडरस्टैंड है। डिफिकल्ट है और सावधानी से देखने की चीज है। क्योंकि, यह ऐसे किसी भी फॉर्म्युले पर आधारित नहीं, जो बॉलिवुड में पहले भी आजमाया जा चुका है। इसलिए इसके किसी भी पिछले सीन से अगले सीन का 'आभास' आप नहीं ले सकते।
कलाकारों की बात करें तो शाहिद कपूर की अदाकारी मैच्योर हो चली है। शाहिद के समकालीन कथित स्टार्स शाहिद के कद के सामने छोटे होने लगे हैं। प्रियंका कहीं से भी फिल्म की हीरोइन- टाइप नहीं लगी हैं। यही प्रियंका चोपड़ा की सफलता है। वह वही लगी हैं जो किरदार वह निभा रही हैं। वह अच्छी एक्टिंग कर रही हैं ऐसा लगा ही नहीं, क्योंकि प्रियंका की ग्लैमरस (?)इमेज फिल्म को देखते में आंखों के सामने घूमती ही नहीं। बस वही किरदार हावी रहता है जो वह निभा रही हैं।
भोपे के रोल में अमोल गुप्ते की अदाकारी गजब है और... सार में कह दें तो हर किरदार की अदाकारी कॉम्पेक्ट है, बेहतरीन है। नुक्ताचीनी समीक्षक कर सकेंगे, अपन को तो बस भा गई है विशाल भारद्वाज की यह फिल्म। तेनजिंग नीमा, चंदन रॉय सान्याल और शिव सुब्रमण्यम ने अपने किरदार बेहतरीन तो निभाए ही हैं, यह भी संदेश दिया है कि नंबर वन टू थ्री की दौड़ से अलग 'एक्टर्स' की एक दुनिया है जहां अब रत्नों की संख्या बढ़ती जा रही है।
गुलजार का टाइटल सॉन्ग फिल्म के हर गीत पर भारी है। कभी हम कमीने निकले, कभी दूसरे कमीने...।
अगर आप यह फिल्म देखने के बारे में सोच रहे हैं तो एक राय आपको, कि इसे शुरू से अंत तक देखिए। इंटरमिशन में उठिए या फिर अपने माउस से पॉज़ बटन दबा कर उठिए। मेरी समझ में इस फिल्म को देखते समय आया मामूली इंटरप्शन भी फिल्म का मजा खराब कर देगा और तब अगले कुछ चंद लम्हों में आप महाबोर होने लगेंगे।
Saturday, August 15, 2009
पूछताछ
"नहीं..मैं शाकाहारी हूं
नहीं ऐसे ही हूं..
कोई खास वजह नहीं..
वैसे अंडे से मुझे खास परहेज नहीं
नहीं मैं ड्रग्स नहीं लेता
पर मैं शराब का शौकीन हूं
शराब अमरीकी हो तो ज्यादा भाती है..
नहीं अफगान मैं कभी गया नहीं..
दिवाली.. हां एक त्योहार है
पर मेरा खास प्रिय नहीं..
क्योंकि शोर शराबा मुझे पसंद नहीं
क्रिसमस नहीं मनाया कभी
मौका नहीं मिला कभी
नहीं क्रिसमस से मुझे कोई परहेज नहीं
क्यों हो आखिर?!....
दरअसल, वजह सिर्फ यह है
कि ईसाई मेरे इर्द गिर्द नहीं, बस इसलिए...
हां ईद तो मैं मनाता हूं।
मेरा प्रिय त्योहार है।
नहीं दिवाली खास प्रिय नहीं..
क्योंकि शोर शराबा नहीं झेल पाता मैं...
बस और कोई वजह नहीं
क्यों हो आखिर?!......
ईद अपेक्षाकृत शांत त्योहार है
नहीं ईद तो मैं मनाता हूं...
मेरा प्रिय त्योहार है..
बचपन से ही मनाता हूं
हां पासपोर्ट है मेरे पास
हां वोटरआईडी भी
स्कूलिंग मेरी अलीगढ़ से हुई
नहीं मदरसे से नहीं..
जामिया मिलिया इस्लामिया से ग्रेजुएशन की
नहीं उर्दू तो घर पर ही सीखी थी
अब्बा ने सिखाई थी
हां अब भी पढ़ लेता हूं..
पर...
नहीं जामिया नगर नहीं रहा कभी
पुराने दोस्तों से.. हां संपर्क में हूं
नहीं बस संपर्क में हूं..
नहीं बस ऐसे ही हूं..
नहीं वो साथ काम नहीं करते..
नहीं हम आगे साथ पढ़े नहीं..
नहीं वो घर पर नहीं आते जाते..
कुछ आते हैं
नहीं ऐसे ही आते हैं..
हम फेसबुक पर हैं
हां इसी नाम से हूं
नहीं छद्म नाम से नहीं हूं..
वो भी नहीं हैं
हां मेरे ही समुदाय से हैं
एक सिख भी है
सभी समुदाय से हैं
नहीं अपनी पहचान के साथ ही हैं...
वो करीबी दोस्त नहीं...
नहीं बाकियों के ज्यादा करीब हूं..
ऐसे ही
सर, एक बात बताऊं..
मेरी बेटी का नाम प्रताप दुबे की माता जी ने रखा है..
नहीं कभी यूनियन में नहीं रहा
हां यह तब मेरा रोलनंबर था...
वो तो मैं लाया नहीं..
सर..
कल जमा कर दूं?
ठीक है आप साथ चलिए..
ठीक है मैं कल आऊंगा..
नहीं.. भागूंगा कहां?
भागूंगा क्यों!?
भागूंगा नहीं, जरूर आऊंगा
सर, ये लीजिए..
यह मेडिकल सार्टिफिकेट है
मेरी दो आंखें हैं
मेरे दो कान हैं
और मैं इंसान हूं
मेरा नाम खान है
मैं मुसलमान हूं.."
(स्वतंत्रता दिवस पर मिली ये खबर बहुत बुरी है)
फोटो साभार- गूगल
Tuesday, August 11, 2009
अब धैर्य नहीं
उम्मीद, एक फुदकती चिड़िया
कौन साला इंतजार करे
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा
एक दिन वह बिना पिए घर जरुर आएगा
अपने सोते हुए बच्चों के सिर पर स्नेह से हाथ फिरा पाएगा
कहेगा, खाने को दो भूख लगी है
बिना उल्टी किए बिस्तर पर पसरेगा
और जूते उतार कर टीवी ऑन कर पाएगा
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा।
एक दिन नई वाली पड़ोसन भूल जाएगी पूछना
कि कौन कास्ट हो
वो आएगी, बैठेगी, और बतियाएगी
चीनी की कटोरी लेते में
यह नहीं भांपना चाहेगी
कि कौन कास्ट हो
वह जान जाएगी कौन कास्ट हूं
और फिर चीनी ले जाएगी
कि एक दिन चीनी की मिठास मेरी कास्ट पर भारी पड़ जाएगी
पर कौन साला इंतजार करे.................
कौन साला इंतजार करे
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा
एक दिन वह बिना पिए घर जरुर आएगा
अपने सोते हुए बच्चों के सिर पर स्नेह से हाथ फिरा पाएगा
कहेगा, खाने को दो भूख लगी है
बिना उल्टी किए बिस्तर पर पसरेगा
और जूते उतार कर टीवी ऑन कर पाएगा
कि वक्त आएगा और सब सुधर जाएगा।
एक दिन नई वाली पड़ोसन भूल जाएगी पूछना
कि कौन कास्ट हो
वो आएगी, बैठेगी, और बतियाएगी
चीनी की कटोरी लेते में
यह नहीं भांपना चाहेगी
कि कौन कास्ट हो
वह जान जाएगी कौन कास्ट हूं
और फिर चीनी ले जाएगी
कि एक दिन चीनी की मिठास मेरी कास्ट पर भारी पड़ जाएगी
पर कौन साला इंतजार करे.................
Monday, August 10, 2009
बस बात- 2
आइए उम्मीद जगाएं
ईश्वर के नाम पर जलाएं कुछ दिए,
और इन दियों से असंख्य देहरी टिमटिमाने की आस बनाएं..
आइए उम्मीद जगाएं।
1 मिनट के करतब पर जो 10 हजार ले जाए, उसे थपथपाएं (!)
हजारों नट और सपेरे कहां गुमनाम हुए, क्यों न सवाल उठाएं
बस जो छा जाए, क्यों उसे ही सलाम बजाएं।
रिअल्टी शो की दुनिया में
न्याय नाम के हत्यारे को
क्यों न फांसी पर चढ़ाएं।
आइए कुछ मौतों की दुआएं मनाएं।
ईश्वर के नाम पर जलाएं कुछ दिए,
और इन दियों से असंख्य देहरी टिमटिमाने की आस बनाएं..
आइए उम्मीद जगाएं।
1 मिनट के करतब पर जो 10 हजार ले जाए, उसे थपथपाएं (!)
हजारों नट और सपेरे कहां गुमनाम हुए, क्यों न सवाल उठाएं
बस जो छा जाए, क्यों उसे ही सलाम बजाएं।
रिअल्टी शो की दुनिया में
न्याय नाम के हत्यारे को
क्यों न फांसी पर चढ़ाएं।
आइए कुछ मौतों की दुआएं मनाएं।
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