मुस्लिम विवाह परंपरा में टूटती वर्जनाओं पर एक पोस्ट शाम मैंने चोखेरबालियां में डाली है। डॉक्टर सैयदा हमीद ने एक युगल का निकाह करवाया है। सैयदा केंद्रीय योजना आयोग की सदस्य हैं। वे प्रगतिशील मुस्लिम महिला संगठनों से भी जुड़ी हैं। कई मायनों में सैयदा और विवाहित जोड़े ने इतिहास रच दिया है। प्रेरक तो बने ही हैं।
मगर, अब विवाह की वैधता पर सवाल उठने लगे हैं। कहा जा रहा है कि महिला काजी सरकार से मान्यता प्राप्त नहीं है। डॉक्टर सैयदा को यह अधिकार किसने दिया कि वह विवाह करवाए। कुछों का मानना है कि परंपरागत रूप से पुरूष काजी की निकाह करवाते आए हैं और इसे प्रथा को बिना किसी ठोस वजह तोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं थी। आदि इत्यादि।
लेकिन सैयदा, इमरान नईम और नईश हसन (दूल्हा- दुल्हन) मानसिक रूप से इस तरह के विरोध को लेकर तैयार होंगे। वे जानते होंगे कि उनके कदम पर धीरे धीरे, या तेजी से, चिल्लपौं मचेगी।
मगर, फिर सैयदाएं यूं हथियार नहीं डालतीं। वे न सिर्फ निकाह करवाती हैं बल्कि निकाह की पूरी प्रणाली एक विदेशी भाषा यानी अंग्रेजी में करवाती हैं। देश के युवा को आज इमरान और नईश जैसों की भी सख्त जरूरत है। इमरान और नईश गालिब की मशहूर गजल की पंक्ति को चरितार्थ करते हैं- रंगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल, रगों से ही जो न टपका, तो फिर लहू क्या है....
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Podcast: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं का मेरा पॉडकास्ट
हिन्दी के मशहूर कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविताओं को मैंने न्यूज18 हिन्दी के लिए पढ़ा था. यहां मैं पहली बार अपना हिन्दी पॉडकास्ट पोस्ट...
-
वैसे तो प्रेम और आस्था निजी मामला है। विशेषतौर पर तब जब वह ईश्वर से/पर हो। लेकिन, मित्र प्रणव प्रियदर्शी जी ने बस बात- २ पोस्ट को ले कर घो...
-
life is just a hand away death, too, is a hand away in between the happiness and despair- I reside... fake is what soul wore today shadow is...
-
यूं तो हम और आप कितना ही साहित्य पढ़ते हैं, पर कुछ लफ्ज अंकित हो जाते हैं जहनोदिल पर। ऐसे अनगिनत अंकित लफ्जों में से कुछ ये हैं जिन्हें Boo...
3 comments:
मुस्लिम विवाह में काजी की भूमिका केवल पुरुष निभाए यह जरूरी नहीं,यह परंपरा मात्र है जिस में परिवर्तन किया जा सकता है।
सही कह रहे हैं। मगर पितृसत्तात्मक इस समाज ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है। देखिए तो सही, आज के अखबारों में धर्मगुरूओं द्वारा इस विवाह के विरोध की खबरें हैं। विवाह को मान्य तक नहीं माना जा रहा है। अब इसे क्या कहें...।
मुस्लिम विवाह के लिए काजी का होना अनिवार्य नहीं है. वर एवं वधु स्वयं भी अपना निकाह पढ़ सकते हैं. हाँ गवाहों का होना अनिवार्य है. जहांतक शरीअताचार्यों का सम्बन्ध है, उन पर क्या टिपण्णी की जाय. वैसे तो यह शेर बिल्कुल ही दूसरे सन्दर्भ में कहा गया है किंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इस्लाम की आत्मा मुस्लिम फतवा एक्सपर्ट मोलवियों को संबोधित करके यह शेर पढ़ रही हों- "उनका जो काम है, वो अहले-सियासत जानें / मेरा पैगाम मुहब्बत है जहाँ तक पहुंचे. shailesh zaidi
Post a Comment