
उड़ीसा में विश्व हिंदू परिषद द्वारा प्रायोजित,सॉरी आयोजित, बंद के दौरान एक महिला जिंदा जली, कई गंभीर रूप से घायल हुए और कुल पांच लोगों के मारे जाने की खबर है...
जम्मू में कई दिनों से आग लगी हुई है। स्वर्ग को नरक बनाने की हरसंभव कोशिश जारी है। तीन दिन से लगातार कर्फ़यू झेल रहा है यह क्षेत्र। पाक की नापाक कोशिशें जो रंग नहीं ला पाईं वो हमारे अपने ला रहे हैं...
और अभी -अभी की खबर है कि आज सुबह के पाक आतंकी हमले में आतंकवादियों ने एक परिवार को बंदी बना लिया है...
बिहार की `शोक´ नदी के दो सौ साल बाद रास्ता बदलने से प्रलय का सा माहौल है। लाखों लोग प्रभावित हैं। चारों ओर कोहराम मचा हुआ है...
ऐसे में सुशील, विजेंद्र और अभिनव। अंबानी बंधुओं की प्रति सेंकेड की सैलेरी का मनभावन सा ? हिसाब। सिंह इज किंग की विदेशों में धूम। नैनो समेत शेयर बाजार का कभी-कभी ऊपर दौड़ लगा जाना जैसी हंसी खुशी की खबरें भी खुशी नहीं दे रहीं। क्या मैं निराशावादी हो रही हूं? क्या मैं दाल में काला तलाश रही हूं, जबरदस्ती? क्या मैं अलग अलग चीजों को एक ही लेंस से देखने की बेवकूफी कर रही हूं? आप बताएं.....
आप बताएं, मेरे ही देश में लाखों लोग पानी में बह कर डूब कर सड़ कर मर जाएं तो मैं मेडलों की खबर को कैसे ओढूं और बिछाऊं...!? उड़ीसा में एक मौत का बदला कई मौतों से ले लिया जाए तो कोई कैसे कह कर खुश होए कि इंडिया शाइनिंग जी...? शाइनिंग की आड़ में जो स्याह कालापन है उस पर से कैसे आंखें भींच लें। खुशियां मनाने की कई वजहें हैं मगर इस समय जो जरूरी दीख पड़ रहा है वह है आम सी लगने वाली घटनाअों पर सक्रियता से कदम उठाना। खुशियों में डूब कर हम `डूबने´ को कमतर आंक रहे हैं क्या? आम लगता हो सकता है जम्मू कश्मीर का सुलगना मगर यह आम कहां हैं! समस्या पुरानी हो जाए तो क्या स्वीकार्य हो जाती है? नहीं ना। कोई कैसे धर्म, वर्ग आधार पर हमें लड़ाए जा रहा है। हम अपने `घरवासियों´ यानी बाढ़ प्रभावितों को बचाने की कोशिशों को पुश कर लें तब मनाएं खुशियां दिल खोल कर। कथित धर्माधारित संगठनों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए क्या हम वाकई कुछ नहीं कर सकते!
ये लाचारी है या बहानेबाजी? कृपया बताएं तो.....