
कुछ चीजें छोड़ देने का मन करता है
कुछ चीजें बांध लेने का मन करता है
जो छोड़ना चाहती हूं
छूटता नहीं है
जो बांधना चाहती हूं
बंधता नहीं है
कश्मकश सिर्फ मेरी नहीं है
उन 'चीजों' की भी है
मुझसे और खुदसे
जो छूटना चाहती हैं
पर छूटती नहीं
मेरे अस्तित्व से
जो बंधना चाहती हैं
पर बंधने नहीं देती मैं
उन्हें
अपने अस्तित्व से
फिर भी अक्सर जोर का धक्का लगा कर
छूटने का मन करता है
भाप बन कर
लुप्त होने का मन करता है
इस आपाधापी में
कब क्या छूट जाता है
पता ही नहीं चलता है!
कब क्या लुप्त हो जाता है
पता ही नहीं चलता है!
कब क्या बंध कर
बन पड़ता है
मेरे होने का सबूत
दुनिया की नजरों से देखती हूं तो दिखता है
वरना तो सब जादू सा
मायावी सा लगता है...